राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं और प्राचीन स्थल कौन-कौन से हैं

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राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं / Rajasthan ki Prachin Sabhytayen : राजस्थान के इतिहास में प्राचीन सभ्यताएं एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण टॉपिक है जिसमे से हर परीक्षा में प्रश्न अवश्य पूछे जाते है राजस्थान में आयोगित होने वाली सभी परीक्षाएं जैसे REET Exam 2021, Gram Sevak, RPSC 1st Grade, RPSC 2nd Grade , Patwari Exam, High Courst LDC, High Court Group – D के पाठ्यक्रम में यह टॉपिक मुख्य रूप से शामिल किया गया है इसलिए इसका विस्तृत अध्ययन यहाँ करेंगे तथा अधिक प्रश्नों का अभ्यास के लिए ePariksha App डाउनलोड कीजिये जिसका लिंक इस विडियो के अंत में दिया गया है

राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं

विकास के क्रम में मानव ने सर्वप्रथम पाषाण निर्मित साधनों का प्रयोग किया मानव सभ्यता का यह समय पाषाण काल कहा गया पाषाण युग के उपरान्त मानव ने धातुओं का प्रयोग करना प्रारम्भ किया मानव ने जिस धातु का सर्वप्रथम प्रयोग किया वह धातु ताँबा थी इन सभ्यताओं को ‘ताम्रयुगीन सभ्यता’ कहा गया. ताँबे के पश्चात् कांसे का प्रयोग हुआ कांसा धातु ताँबा व टिन से मिलकर बनाया गया इसलिए यह सभ्यता ‘कांस्ययुगीन सभ्यता’ कही गई इसके बाद मानव ने लौह धातु का प्रयोग किया इसी ‘लौहयुगीन सभ्यता’ के साथ ही आधुनिक सभ्यताओं का विकास हुआ.
पुरातात्विक साक्ष्य यह प्रमाणित करते हैं कि राजस्थान प्रदेश की सभ्यता और संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितनी कि प्राचीन भारतीय सभ्यता. राजस्थान के पश्चिमी भूभाग पर (लूनी बेसिन में) प्राक ऐतिहासिककाल के अवशेष दिखाई देते हैं. ऋग्वेद के अनुसार राजस्थान के गंगानगर जिले की पूर्वी सीमा पर दृशमती व सरस्वती नदी का प्रवाह क्षेत्र था इसलिए इस स्थल को राजपूताना में ब्रह्मावर्त कहा गया. इस तरह राजस्थान प्रदेश में हम अनेक सभ्यताओं का अस्तित्व देखते हैं

कालीबंगा सभ्यता (सैंधवकालीन तीसरी राजधानी)

यह प्राचीन स्थल वर्तमान में हनुमानगढ़ जिले में स्थित है. राजस्थान में हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के समकक्ष एवं समकालीन इस सभ्यता के अवशेष दृशमती व सरस्वती नदी की घाटियों में मिले वर्तमान में दृशमती व सरस्वती नदियों का वर्चस्व हमें दिखाई नहीं देता इन नदियों का स्थान आज घग्घर नदी ने लिया है.

कालीबंगा सभ्यता का शाब्दिक अर्थ वहाँ से प्राप्त असंख्य काली चूड़ियों से लगाया जाता है. इस स्थल की सर्वप्रथम खोज 1952 ई. में अमलानन्द घोष द्वारा हुई. कुछ समय बाद इनके निर्देशन में बालकृष्ण थापर एवं ब्रजबिहारी लाल ने 1961-69 ई. में इस सभ्यता का उत्खनन किया

कालीबंगा सभ्यता में घग्घर नदी के दो टीलों को खुदाई के लिए चुना गया जिसमें छोटा टीला पश्चिमी क्षेत्र में जिसे ‘गढ़ी क्षेत्र’ कहा जाता था. इस स्थान से प्राचीन हड़प्पाकालीन साक्ष्य मिले हैं, इसी प्रकार पूर्व में स्थित बड़ा टीला प्राप्त हुआ, जो हड़प्पाकालीन सभ्यता के अवशेष थे. इसे ‘नगर क्षेत्र’ के नाम से जाना जाता था.

◆  कालीबंगा सभ्यता की महत्वपूर्ण उपलब्धि जुते हुए खेतों का प्रमाण मिलना था, जो विश्व में एकमात्र इसी स्थान से प्राप्त हुए इसके साथ ही हमें कालीबंगा से जौ एवं गेहूँ के प्रमाण मिले कालीबंगा सभ्यता से प्राप्त मृद्भाण्डों पर सैन्धव लिपि के प्रमाण मिले हैं. जिस पर भाषा दायीं ओर से बायीं ओर अंकित थी ऐसी मोहरें इसी स्थान से प्राप्त हुई हैं. सर्पिलाकार में होती थीं.

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