अजमेर का चौहान राजवंश : आज के इस लेख में राजस्थान में चौहान वंश के इतिहास के बारे में अध्ययन करेंगे जो सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है
चौहानों की उत्पत्ति
- अजमेर का चौहान राजवंश : चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में इतिहासकार एकमत नहीं है इसलिए चौहानों के वंश के सम्बन्ध में अब तक कोई भी सर्वमान्य मत स्थिर नहीं हो सका है चौहानों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रमुख मत निम्न प्रकार है –
अग्निवंशीय
- पृथ्वीराज रासो, मूहणौत नैणसी, सूर्यमल्ल मिश्रण चन्दरबरदाई (पृथ्वीराज रासो), मूहणौत नैणसी व सूर्यमल्ल मिश्रण चौहानों की उत्पत्ति वशिष्ठ ऋषि द्वारा आबू के अग्निकुण्ड से मानते हैं
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सूर्यवंशीय –
- जयानक (पृथ्वीराज विजय), नयनचन्द्र सूरी (हम्मीर महाकाव्य), जोधराज (हम्मीर रासों), नरपति नाल्ह (बीसलदेव रासों) एवं डॉ. गौरी शंकर हीराचंद ओझा चौहानों को सूर्यवंशी मानते हैं
विदेशी मत –
- कर्नल जेम्स टॉड, वी.ए. स्मिथ व विलियम क्रूक जैसे विद्वान चौहानों के रस्मों रिवाज के आधार पर उन्हें विदेशी मानते हैं कर्नल टॉड ने चौहानों को अग्निवंशीय स्वीकार कर इन्हें विदेशी (मध्य एशिया से आए हुए) बताया गया है
ब्राह्मणवंशीय –
- जान कवि (कायम खाँ रासो), दशरथ शर्मा, बिजोलिया शिलालेख चन्द्रावती का लेख
डॉ. दशरथ शर्मा
- बिजोलिया शिलालेख के आधार पर चौतार को ब्राह्मण माना है चन्द्रावती के लेख में भी चौहानों की ब्राह्मणवंशीय माना है
कायम खाँ रासो
- कायम खां रासो में भी चौहानों की उत्पत्ति वत्स से बतायी गई इस कथन की पुष्टि सुण्डा तथा आबू अभिलेख से भी होती है
चन्द्रवंशीय
- हाँसी शिलालेख व अचलेश्वर शिलालेख आबू
इन्द्रवंशीय
- रायपाल के सेवाड़ी (पाली) के शिलालेख में चौहानों को ‘इन्द्र का वंशज‘ बताते हुए इन्द्रवंशी बताया है
खज जाति से – डॉ. भंडारकर के अनुसार
सांभर झील –
- पं. रामकरण आसोपा के अनुसार चौहान सांभर झील के चारों ओर रहने के कारण ‘चाहुमान‘ कहलाए
चौहानों का मूल स्थान
- चौहानों का मूल स्थान सपादलक्ष (सांभर झील के आस-पास) का भू–भाग माना जाता है पृथ्वीराज विजय, शब्द कल्पद्रुम कोष तथा लाडनूं लेख में चौहानों का निवास स्थान जांगल देश, सपादलक्ष, अहिछत्रपुर आदि उल्लेखित है इससे स्पष्ट होता है कि चौहान जांगल देश के रहने वाले थे और उनके राज्यों का प्रमुख भाग सपादलक्ष (सांभर) था और उनकी राजधानी अहिछत्रपुर (नागौर) थी
अजमेर के चौहान
अजमेर का चौहान राजवंश : अब आगे के लिए में अजमेर का चौहान राजवंश राजवंश के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे इसलिए आप इस लेख तो पूरा पढिये और अजमेर का चौहान राजवंश के इस लेख तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिये
वासुदेव चौहान
- उपनाम – चौहानों का आदि पुरूष/चौहानों का मूल पुरूष/ शाकम्भरी के चौहान वंश का संस्थापक
- वासुदेव चौहान ने 551 ई. में सांभर (सपादलक्ष) झील के आसपास चौहान राज्य की स्थापना की तथा अहिछत्रपुर को अपनी राजधानी बनाया अनुमानतः झील के चारों ओर रहने के कारण ही इन्हें ‘चाहुमान’ कहा जाने लगा
- बिजोलिया शिलालेख (1170 ई.) – के अनुसार सांभर झील का निर्माण वासुदेव चौहान ने ही करवाया था (वास्तव में सांभर झील एक प्राकृतिक झील है) चौहानों के लिए ‘विप्रः श्रीवत्सगोत्रेभूत’ अंकन हुआ है इसमें चौहान शासकों को वत्स गोत्र के ब्राह्मण कहा गया है
- इसके बाद सामन्त राज (समय लगभग 817 ई.), नृपराज (सामन्त राज का उत्तराधिकारी), जयराज (सामन्तराज का पुत्र), विग्रहराज प्रथम (जयराज का पुत्र), चन्द्रराज प्रथम, गोपेन्द्रराज यहाँ के शासक बने
दुर्लभराज प्रथम
- ये प्रतिहार शासक ‘वत्सराज’ का सामन्त था, वत्सराज के साथ रहते हुए बंगाल के धर्मपाल को हराया था
गुवक प्रथम
- प्रतिहार शासक ‘नागभट्ट द्वितीय’ का सामन्त था
- हर्षनाथ मंदिर (सीकर)- गुवक प्रथम ने हर्षनाथ मंदिर का निर्माण करवाया जो चौहान शासकों के इष्ट देव हैं
- प्रारम्भ में चौहान शासक गुर्जर प्रतिहारों के सामन्त थे गुवक प्रथम ने पहली बार अपना स्वतंत्र शासन स्थापित कर गुर्जर प्रतिहारों की अधीनता से स्वयं को मुक्त किया
गुवक द्वितीय
- इसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए अपनी बहन कलावती का विवाह कन्नौज शासक ‘भोजराज’ से किया
चन्दनराज
- गुवक द्वितीय का पुत्र था इसने दिल्ली के तोमर शासकों को हराया
- चन्दनराज की पत्नी रूद्राणी (आत्मप्रभा) यौगिक क्रिया में काफी निपुण थी, बड़ी शिवभक्त थी, प्रतिदिन 1000 दीपक अपने इष्ट देव महादेव के सामने जलाकर पुष्कर झील में प्रवाहित करती थी
वाक्पतिराज प्रथम
- चन्दनराज का पुत्र था
- हर्षनाथ शिलालेख में इसे ‘महाराज’ की उपाधि दी गई है इसी के शासनकाल में राष्ट्रकूटों ने प्रतिहारों की शक्ति को नष्ट कर दिया, जिसका फायदा उठाकर वाक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों के कई भाग अपने राज्य में मिला लिए
सिंहराज
- इसने दिल्ली के तोमरों व प्रतिहारों को हराया जिससे दोनों शत्रुओं ने मिलकर सिंहराज की हत्या कर दी
- हर्षनाथ शिलालेख (973 ई.) के अनुसार इसने सेनापति की हैसियत से तोमर शासक ‘सलवण’ को परास्त किया था सिंहराज सम्भवतः गुर्जर प्रतिहार शासक देवपाल का सामन्त था
- सिंहराज ने ‘महाराजाधिराज‘ की उपाधि धारण की थी
विग्रहराज द्वितीय
- ये सिंहराज का पुत्र था, जो लगभग 956 ई. में सांभर की गद्दी पर बैठा चौहान वंश के प्रारम्भिक शासकों में बड़ा प्रभावशाली व योग्य शासक था
- अन्हिलवाड़ा के चालुक्य शासक ‘मूलराज प्रथम’ को हराया भडौच (गुजरात) में अपनी कुलदेवी ‘आशापुरा माताजी‘ का मंदिर बनवाया स्रोत- हर्षनाथ शिलालेख सीकर जिले की हर्ष पहाड़ी पर हर्षनाथ शिलालेख (973 ई.)
- इसी के समय का ही है हर्षनाथ शिलालेख से विग्रहराज के शासनकाल के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हैं
दुर्लभराज द्वितीय
- विग्रहराज द्वितीय का भाई था
- नाडोल के महेन्द्र चौहान को परास्त किया
- शकाई लेख में ‘महाराधाधिराज‘ की उपाधि दी गई है
- अभिलेखों में इसे ‘दुर्लध्यमेरू‘ (जिसकी आज्ञा का कोई उल्लंधन ना करें) कहा गया है
गोविन्दराज तृत्तीय
- विग्रहराज द्वितीय का पुत्र था
- पृथ्वीराज विजय में इसे ‘वैरिधरट्ट’ (शत्रु संहारक) कहा गया है
- फरिश्ता ने गोविन्द तृत्तीय को ‘गजनी के शासक’ को मारवाड़ मे आगे बढ़ने से रोकने वाला कहा है
वाकपतिराज द्वितीय
- गोविन्द तृत्तीय का पुत्र था
पेज 61 से शरू
- बीसलदेव अपने पिता के हत्यारे पितृहंता जगदेव को हटाकर शासक बना
- इनका साम्राज्य शिवालिक पहाड़ी, सहारनपुर तथा उत्तर प्रदेश तक फैला था
- इसने चालुक्य शासक कुमारपाल से पाली, नागौर व जालौर के क्षेत्र विजित किए और भण्डानकों को भी पराजित किया
- अमीर खुशरूशाह – विग्रहराज चतुर्थ ने गजनी के शासक खुशरूशाह मलिक को हराकर हिन्दु राजाओं को गजनी शासन से मुक्ति दिलाई
- 1157 ई. में दिल्ली के तौमर वंशीय शासक ‘तंवर‘ को हराकर साम्राज्य का विस्तार किया विग्रहराज दिल्ली पर अधिकार करने वाला प्रथम चौहान शासक था
- विग्रहराज IV का शासनकाल सपादलक्ष के चौहानों का स्वर्णकाल कहलाता है (हर्षनाथ अभिलेख)
- संस्कृत पाठशाला (अजमेर) – विग्रहराज ने 1153 ई. में अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला बनवाई मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबद्दीन ऐबक ने इसे तुड़वाकर एक मस्जिद बनवा दी व फारसी लेख लिखवाए जो राजस्थान की पहली मस्जिद कहलायी इसे ‘16 खम्भों का महल‘ व ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा‘ भी कहते हैं यहाँ सुफी संत पंजाबशाह पीर का ढ़ाई दिन का उर्स लगता है
- कर्नल टॉड – “अढ़ाई दिन का झोंपड़ा हिन्दु शिल्प कला का प्राचीनतम व पूर्ण परिष्कृत नमूना है”
हरिकेली नाटक (संस्कृत भाषा)
- विग्रहराज द्वारा रचित इस नाटक में महाभारत काल में हुए अर्जुन व शिव के मध्य युद्ध का उल्लेख है
- इसकी कुछ पंक्तियाँ ‘अढ़ाई दिन के झोंपड़े तथा ब्रिस्टल (इंग्लैण्ड) स्थित ‘राजाराम मोहन राय‘ के स्मारक पर अंकित है
- ललित विग्रहराज‘ – विग्रहराज के दरबारी विद्वान सोमदेव द्वारा रचित नाटक, जिसमें विग्रहराज एवं इन्द्रपुरी की राजकुमारी देसलदेवी के मध्य प्रेम सम्बन्धों का उल्लेख है जो कि काल्पनिक है
- बीसलदेव रासो – नरपति नाल्ह द्वारा रचित है इसने विग्रहराज, व परमार राजा भोज की बेटी राजमती के मध्य प्रेम सम्बन्धों का उल्लेख है
- किलहॉर्न ने बीसलदेव की विद्वता की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि- “वह उन हिन्दू शासकों में से एक व्यक्ति था, जो कालीदास और भवभूति की हौड़ कर सकता था”
- पृथ्वीराज विजय का लेखक लिखता है कि जब विग्रहराज की मृत्यु हो गई तो ‘कविबान्धव’ की उपाधि निरर्थक हो गई, क्योंकि इस उपाधि को धारण करने की क्षमता किसी में नहीं रही
- दिल्ली शिवालिक स्तम्भ अभिलेख – (1163 ई.) विग्रहराज चतुर्थ के समय का यह शिलालेख है इस शिलालेख के अनुसार बीसलदेव ने देश के मुसलमानों का सफाया कर दिया तथा अपने उत्तराधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मुसलमानों को अटक नदी के उस पार तक सीमित रखें
- बीसलसागर तालाब – राजमहल (टोंक) के पास बीसलपुर बसाकर यहाँ बीसल सागर झील बनवाई
- इन्होंने दरबारी विद्वान धर्मघोष सूरी के कहने पर ‘एकादशी के दिन पशुवध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था
- विग्रहराज चतुर्थ के बाद कुछ समय के लिए उसका भाई अपरगांगेय शासक बना लेकिन जगदेव के पुत्र पृथ्वीराज द्वितीय ने अपरगांग्य की हत्या कर दी इस प्रकार पृथ्वीराज द्वितीय शासक बना
पृथ्वीराज द्वितीय (1164 ई.- 1169 ई.)
- पृथ्वीराज द्वितीय की निःसंतान मृत्यु होने पर उसका चाचा सोमेश्वर (अर्णोराज का पुत्र व विग्रहराज चतुर्थ तथा अपरगांग्य का भाई) जो गुजरात में जयसोम और कुमारपाल के दरबार में कार्यरत था, शासक बना
सोमेश्वर (1169 ई.- 1177 ई.)
- यह अर्णोराज का सबसे छोटा पुत्र था, इसकी माता का नाम कांचन देवी (गुजरात की राजकुमारी) था
- सोमेश्वर ने कुमारपाल के कोंकण के शत्रु ‘मल्लिकार्जुन’ को परास्त किया जिससे वह काफी प्रसिद्ध हुआ
- इसने कलचुरी की राजकुमारी ‘कर्पुर देवी‘ (दिल्ली के अनंगपाल तोमर की पुत्री) से विवाह किया जिससे दो पुत्र ‘पृथ्वीराज तृत्तीय‘ (जन्म 1166 ई.) व ‘हरिराज‘ हुए
- सोमेश्वर ने अपने पिता अर्णोराज व स्वयं की मूर्ति बनाकर नवीन मूर्तिकला को प्रोत्साहन दिया
- सोमेश्वर 1177 ई. में आबू के शासक जैतसिंह की सहायता के लिए गया तो गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय ने सोमेश्वर की हत्या कर दी
- बिजोलिया शिलालेख (1170 ई.) सोमेश्वर के समय का है
पृथ्वीराज तृत्तीय (1177 ई.- 1192 ई.)
- उपनाम- दल पंगूल (विश्व विजेता)/राय पिथौरा
- इनका जन्म अहिलवाड़ा/अन्हिलपाटन (गुजरात) में 1166 ई. में हुआ
- पिता – सोमेश्वर
- माता – कपुर देवी
- अजमेर के चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक था
- 1177ई में पिता सोमेश्वर की मृत्यु के समय पृथ्वीराज सिर्फ 11 वर्ष की आयु में शासक बना उसकी माता कर्पूरी देवी ने बड़ी योग्यता और बुद्धिमानी से राज्य का संचालन किया
- मुख्यमंत्री – कदम्बवास (कैमास)
- सेनाध्यक्ष – भुवनमल्ल ने (जिसने पारम्भिक काल में पृथ्वीराज को सुरक्षित रखा)
- 1178 ई में पृथ्वीराज ने राजकार्य अपने हाथों में ले लिया पृथ्वीराज जब शासक बना तो स्वयं को चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा हुआ पाया इनका धीरे-धीरे सफाया करना शुरू किया
- गुडगाँव का युद्ध (1178 ई)- अपरगाग्य के छोटे भाई नागार्जुन ने विद्रोह कर गुड़गाँव पर कब्जा कर लिया, 1178 ई. में मंत्री कैमास की सहायता से गुड़गाँव का युद्ध में विद्रोह कर दमन किया
- भण्डानकों का दमन – भण्डानक सतलज प्रदेश की एक जाति थी, जो गुड़गाँव, हिसार के आस-पास निवास करने लगे, जो भरतपुर अलवर, मथुरा क्षेत्र के अपना प्रभाव स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे पृथ्वीराज तृतीय ने 1182 ई. में सैनिक कार्यवाही से उनका दमन किया
- महोबा विजय (1182 ई.)- (तुमुल का युद्ध) एक बार पृथ्वीराज के सैनिक दिल्ली से युद्ध करके लौट रहे थे, रास्ते में महोबा राज्य में जख्मी सिपाहियों को चंदेल राजा परमार्दिदेव‘ ने मरवा दिया पृथ्वीराज बदला लेने के लिए विशाल सेना लेकर निकला नरायन के स्थान पर डेरा डाला
- इससे परमार्दिदेव घबरा गया उसने अपने पुराने सेनानायक आल्हा व उदल को वापस बुलाया इस ‘तुमुल के युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई आल्हा व उदल वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारे गए
आल्हा-ऊदल
- अजमेर का चौहान राजवंश से सम्बंधित आल्हा व ऊदल महोबा राज्य के सेनानायक थे, ये महोबा के चन्देल शासक परमार्दी देव के व्यवहार से नाराज होकर कन्नौज दरबार में चले गए थे 1182 ई. में जब पृथ्वीराज चौहान तृत्तीय ने महोबा पर आक्रमण किया तब, मातृभूमि की रक्षार्थ ‘आल्हा व ऊदल’ लौट आए इस युद्ध में ये दोनों अपने सहयोगियों सहित लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
‘चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय से संघर्ष‘
- चौहानों व चालुक्यों में पुराना वैमनस्य था पृथ्वीराज रासों के अनुसार पृथ्वीराज ने आबू के परमार नरेश सलख की पुत्री ‘इच्छिनी‘ से विवाह कर लिया इससे चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय भी विवाह करना चाहता था जिससे भीमदेव द्वितीय नाराज हो गया
- वास्तव में चालुक्य और चौहानों की मारवाड क्षेत्र में सीमा लगती थी चालुक्य नरेश शाकम्भरी को अपने राज्य में मिलाना चाहता था इन युद्धों में कभी जगदेव प्रतिहार (भीमदेव द्वितीय का सेनापति) की विजय होती, कभी पृथ्वीराज की 1184 ई में नागौर युद्ध के दौरान दोनों में संधि हो गयी
- अच्छन कुमारी (इछिनी) – आबू नरेश सलख/जैतसिंह परमार की पुत्री थी जो पृथ्वीराज की वीरता पर मुग्ध थी और उससे विवाह करना चाहती थी इससे भीमदेव द्वितीय भी विवाह करना चाहता था भीमदेव ने आबू पर आक्रमण किया, जैतसिंह ने सोमेश्वर चौहान से सहायता मांगी, युद्ध में सोमेश्वर 1177 ई. में मारा गया पृथ्वीराज तृत्तीय ने अच्छन से विवाह कर लिया
- तराईन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और बंदी बना लिया गया तो इच्छिनी अपने पति को छुड़ाने घोड़े पर सवार होकर निकली जो एक यवन के तीर से मारी गयी, राजपूत सरदारों ने (शव को मलेच्छो से बचाने के लिए) युद्ध में ही उसे चिता पर रख कर जला दिया
चौहानों और गहड़वालों में शत्रुता
जयचन्द गहड़वाल
- चौहान साम्राज्य के उत्तर-पूर्व में कन्नौज में गहड़वालों का साम्राज्य था यहाँ का शासक जयचन्द गहड़वाल पृथ्वीराज तृत्तीय का मौसेरा भाई था, जो अपना राज्य विस्तार करना चाहता था
- दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर निःसन्तान था तो उसने अपने नाती पृथ्वीराज तृत्तीय को दिल्ली का राजा बना दिया जयचंद भी दिल्ली का राज्य प्राप्त करने का सपना देख रहा था
- दिल्ली का राज्य प्राप्त करने को लेकर जयचंद व पृथ्वीराज में आपसी वैमनस्य हो गया
संयोगिता
- पृथ्वीराज रासो के अनुसार चौहान और गहड़वालों मे शत्रुता का तात्कालिक कारण जयचन्द गहड़वाल की पुत्री ‘संयोगिता‘ थी
- संयोगिता के पृथ्वीराज से प्रेम किए जाने का पता चलने पर जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर रखा, इसमें पृथ्वीराज को नहीं बुलाया गया उसे अपमानित करने के लिए पृथ्वीराज की एक मूर्ति द्वारपाल के स्थान‘ पर लगा दी स्वयंवर के दौरान संयोगिता ने उस मूर्ति के गले में, माला डाल दी, इस बात का पता चलने पर पृथ्वीराज अपनी, सेना सहित गया और संयोगिता को उठाकर अपने साथ लाया, अपनी राजधानी पहुँच कर उससे गंधर्व विवाह किया
- अबुल फजल ने संयोगिता की कथा का वर्णन किया है सी.वी. वैद्य व डॉ. गोपीनाथ शर्मा भी इस कथा को स्वीकार करते हैं लेकिन डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा इसे कपोल कल्पना मानते हुए लिखा है कि प्रबन्ध कोष, हम्मीर महाकाव्य, पृथ्वीराज प्रबन्ध एवं प्रबन्ध चिन्तामणि जैसे समकालीन ग्रन्थों में इस घटना का कोई जिक्र नहीं है
तुर्कों से संघर्ष
- 1178 ई. मे मोहम्मद गौरी गजनी का सुबेदार बना गौरी ने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए भारत में सर्वप्रथम गुजरात पर आक्रमण किया 1178 ई. में भीमदेव द्वितीय से आबू का युद्ध में गौरी की हार हुई
- दूसरी बार अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते हुए पंजाब के रास्ते प्रवेश किया 1186 से 1191 ई. के मध्य पृथ्वीराज ने गजनी के शासक मोहम्मद गौरी को कई बार हराया (सभी छोटे झगड़े थे) हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 7 बार, पृथ्वीराज प्रबन्ध के अनुसार 8 बार पृथ्वीराज रासो में 21 बार व प्रबन्ध चिंतामणि में 23 बार मुहम्मद गौरी के हारने का उल्लेख है लेकिन पृथ्वीराज तृत्तीय और मोहम्मद गौरी के मध्य दो बड़े युद्ध लड़े गए थे
तराईन का प्रथम युद्ध (1191 ई.)
- तराईन का मैदान करनाल (हरियाणा) में है
- 1191 ई. में मुहम्मद गौरी ने तबर-ए-हिन्द/सरहिन्द (भटिण्डा) पर कब्जा कर किला ‘काजी जियाउद्दीन‘ को दे दिया ‘भटिण्डा’ को लेकर गौरी व पृथ्वीराज के मध्य विवाद हो गया पृथ्वीराज ने तबर-ए-हिन्द पर आक्रमण कर काजी जियाउद्दीन को बन्दी बना लिया जिसे बाद में एक बड़ी धनराशि के बदले रिहा कर दिया
- तराईन के युद्ध में गौरी के हमले में ‘राजा गोविन्द राय’ (दिल्ली का गर्वनर) के दो दांत टूट गए, गोविन्द राय ने प्रत्युत्तर में भाले से गौरी पर वार किया जिससे गौरी बुरी तरह घायल हो गया उसके साथी उसे सकुशल ‘गजनी‘ ले गए विजय के जोश में पृथ्वीराज ने भागती हुई गौरी की सेना का पीछा नहीं किया इसे ‘पृथ्वीराज की उदारता‘ कहा जाता है कुछ इतिहासकार इसे पृथ्वीराज की ‘महान भूल‘ बताते हैं
तराईन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.)
- प्रथम युद्ध में हार के बाद मोहम्मद गौरी 1 वर्ष तक सैनिक इकट्ठे करने व आक्रमण की तैयारी में लगा रहा 1192 ई. में लाहौर मुल्तान के मार्ग से वापस उसी मैदान में आ पहुँचा
- हसन निजामी लिखता है गौरी जब लाहौर पहुंचा तो उसने पृथ्वीराज के पास संदेश भिजवाया कि “वह इस्लाम धर्म या गौरी की अधीनता स्वीकार कर ले” पृथ्वीराज ने प्रयुत्तर में भेजा कि “उसे अपने देश लौट जाना चाहिए, अन्यथा उसकी भेंट युद्ध स्थल में होगी“
- मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज को छल से जीतना चाहता था इसलिए उसने पुनः कहलवाया कि वह युद्ध नहीं अपितु संधि चाहता है पृथ्वीराज थोड़ी सी सेना, समरसिंह (मेवाड़ शासक) व गोविन्दराय (दिल्ली) के साथ तराईन के मैदान में पहुंच गया
- पृथ्वीराज की सेना संधि के भ्रम में थी, सुबह जब राजपूत सेना बिखरी पड़ी थी उसी समय गौरी की सेना ने आक्रमण कर दिया इस अचानक आक्रमण से राजपूत घबरा गए इसलिए पृथ्वीराज भी घोड़े पर बैठकर युद्ध के मैदान से भाग गया गौरी की सेना ने पृथ्वीराज को सिरसा के आस-पास पकड़ा और वहीं मार दिया गया यह युद्ध अजमेर का चौहान राजवंश के लिए बहुत की गलत युद्ध शाबित हुआ
पृथ्वीराज रासो के अनुसार –
- गौरी पृथ्वीराज को बंदी बनाकर , गजनी ले गया गौरी के दरबार में पृथ्वीराज को निगाहें झुकाने के लिए कहा लेकिन पृथ्वीराज ने निगाहें नहीं झुकाई तो गौरी ने उसकी दोनों आँखें फुड़वा दी पृथ्वीराज का दोस्त व दरबारी कवि चन्दरबरदाई फकीर के वेश में उससे मिलने गजनी गया
- वह गौरी के पास पहुंचा और कहा पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण है आप उसके शब्दभेदी बाण चलाने का तमाशा देख सकते हो गौरी ने कहा – वह मेरा कहा नहीं मानेगा तब चन्दबरदाई और पृथ्वीराज को मिलाया गया पृथ्वीराज अपने दोस्त की आवाज, पहचान गया, वह शब्दभेदी बाण चलाने के लिए तैयार हुआ
- गौरी ने दरबार लगाकर पृथ्वीराज को बुलवाया तब चन्दबरदाई ने एक दोहा बोला – “चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट , प्रमाण, ता पर सुल्तान है, मत चूके चौहान‘ पृथ्वीराज ने शब्द भेदी बाण से गौरी को मार गिराया
- चन्दरबरदाई ने पृथ्वीराज तृत्तीय की कटार से हत्या कर स्वयं आत्महत्या कर ली
- पृथ्वीराज चौहान तृत्तीय की छतरी काबुल (गजनी) में है
- पृथ्वीराज स्मारक तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) जाने वाले मार्ग में बना हैं नोट- पृथ्वीराज की पराजय का कारण ‘मुहम्मद गौरी की कुशल युद्ध नीति‘ माना जाता है
- भारतीय इतिहास का निर्णायक युद्ध – इससे भारत में स्थाई मुस्लिम साम्राज्य प्रारम्भ हुआ मुहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक बना उसने धीरे-धीरे कन्नौज, गुजरात, बिहार सहित उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया विजित क्षेत्र अपने गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक को सौंपकर गौरी गजनी लौट गया भारत में दिल्ली की सल्तनत की शुरूआत हुई
- गुलाम वंश का प्रथम शासक – कुतुबद्दीन ऐबक (1206 ई.)
पृथ्वीराज तृतीय का मूल्यांकन
- पृथ्वीराज चौहान को ‘अन्तिम हिन्दू सम्राट‘ कहा जाता है, यह ‘रायपिथोरा‘ के नाम से भी प्रसिद्ध था पृथ्वीराज ने अपने चारो ओर के शत्रुओं का खात्मा कर ‘दलपंगुल‘ (विश्वविजेता) की उपाधि धारण की पृथ्वीराज तृत्तीय के दरबारी – पृथ्वीराज के दरबार में चंदबरदाई (पृथ्वीभट्ट), जयानक, वागीश्वर, जनार्दन, विश्वरूप, विद्यापति गौड़ व आशाधर आदि विद्वान कवि व साहित्यकार थे
- जयानक ने ‘पृथ्वीराज विजय’ तथा चन्दरबरदाई (पृथ्वीभट्ट) ने ‘पृथ्वीराज रासो’ की रचना की
- बीसलपुर बांध (टोंक) किनारे महादेव मंदिर निर्माण करवाया
- पृथ्वीराज ने दिल्ली में पिथौरागढ़ किले का निर्माण करवाया
- पृथ्वीराज के घोड़े का नाम ‘नाट्य रंभा‘ था
- तराईन के द्वितीय युद्ध के साथ ही अजमेर के चौहानों की शक्ति समाप्त हो गयी इसलिए अजमेर में मुस्लिम राज्य की नींव पड़ी
- युद्ध के बाद गौरी ने अजमेर गोविन्दराज (पृथ्वीराज तृत्तीय का पुत्र) को लौटा दिया लेकिन पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने गोविन्द को अजमेर से भगा दिया पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद गौरी ने चंदावर युद्ध 1194 में जयचंद को पराजित किया
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह
- अजमेर प्रसिद्ध सुफी : संत मोइनुद्दीन चिश्ती पृथ्वीराज चौहान तृतीय के समय मौहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे
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