रणथम्भौर के चौहान : पृथ्वीराज तृत्तीय की मृत्यु के बाद मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को अजमेर का प्रशासक नियुक्त किया था लेकिन पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने गोविन्द को अजमेर से भगा दिया तब कुतुबद्दीन ऐबक ने उसे रणथम्भौर का राज्य प्रदान किया
गोविन्दराज
- रणथम्भौर के चौहान वंश के संस्थापक गोविन्दराज था जिसने 1194 ई. के लगभग रणथम्भौर में चौहान राज्य की नींव डाली गोविन्दराज के बाद वल्लनदेव (बल्हण/वाल्हण), प्रल्हादन (प्रहलाद), वीरनारायण, बागभट्ट, जैत्रसिंह (जयसिंम्हा) व हम्मीर देव चौहान रणथम्भौर के शासक बने
वीर नारायण
- इसके समय दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया जिसे वीर नारायण ने विफल कर दिया लेकिन वह स्वयं इस संघर्ष में लड़ते हुए मारा गया
बागभट्ट
- इनके समय रजिया सुल्तान ने मलिक कुतुबद्दीन व हसन गौरी के नेतृत्व में रणथम्भौर पर आक्रमण किया इस प्रकार बागभट्ट ने दिल्ली सल्तनत से अपने राज्य की रक्षा की
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जैत्रसिंह
- नागभट्ट के बाद उसका पुत्र जैत्रसिंह/जयसिम्हा रणथम्भौर का शासक बना इसने परमारों, कच्छप व मुसलमानों से युद्ध किए
- जैत्रसिंह ने नासिरूद्दीन महमूद द्वारा भेजी गई सेना को रणथम्भौर प्राप्त करने में विफल कर दिया था
- शासकजैत्रसिंह ने अपने शासनकाल में ही अपने तीसरे पुत्र हम्मीर देव को रणथम्भौर का शासक बना दिया था
- जैत्रसिंह ने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.)
- ये जैत्रसिंह का तीसरा पुत्र था संभवतः सभी पुत्रों में सर्वाधिक योग्य होने के कारण ही उसे उत्तराधिकारी बनाया गया था
- जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में 1282 ई. में उसका राज्यारोहण कर दिया था
- साम्राज्य विस्तार – हम्मीर ने शासक बनने के बाद दिग्विजय की नीति अपनाई और अपने साम्राज्य का विस्तार किया उसने आबू, काठियावाड़, पुष्कर, चम्पा, धार आदि राज्यों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया
- भीमरस के शासक अर्जुन को हम्मीर ने हराया, धार के शासक भोज परमार को हराया माण्डलगढ़ से कर वसूला व मेवाड़ के शासक समरसिंह को परास्त किया
- हम्मीर ने इस विजय अभियान से लौटने के बाद ‘कोटियजन यज्ञ‘ का आयोजन किया जिसका राजपुरोहित ‘विश्वरूप‘ था
- चौहान शासक हम्मीर के गुरु का नाम राघवदेव था
- जलालुद्दीन का आक्रमण – हम्मीर के समकालीन दिल्ली के शासक जलालुद्दीन खिलजी ने 1290 ई. में झाईन दुर्ग (सवाईमाधोपुर) पर आक्रमण कर इस पर अधिकार कर लिया
- झाईन विजय से उत्साहित होकर जलालुद्दीन खिलजी ने 1291-92 ई. में रणथम्भौर दुर्ग पर 2 बार आक्रमण किया उसने लम्बे समय तक रणथम्भौर दुर्ग पर घेरा डाले रखा
- जलालुद्दीन प्रथम खिलजी शासक था, जिसने रणथम्भौर दुर्ग पर आक्रमण किया
- रणथम्भौर को जीत पाने में नाकाम रहने पर जलालुद्दीन ने दुर्ग का घेरा उठा लिया और सेना को वापिस लौटने का आदेश दिया
- जलालुद्दीन का कथन – “मैं ऐसे कई दुर्ग मुसलमान के सिर के एक बाल के बदले वार दूं”
- जलालुद्दीन की सेना के लौट जाने के बाद हम्मीर ने झाईन दुर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया
- अमीर खुसरो व जियाउद्दीन बर्नी (तारीख-ए-फिरोजशाही) के अनुसार रणथम्भौर दुर्ग को जीतने के जलालुद्दीन के सभी प्रयास असफल रहे थे
हम्मीर और अलाउद्दीन खिलजी
- 1296 ई. में जलालुद्दीन की हत्या करके अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का शासक बना इसके बाद अलाउद्दीन व हम्मीर के बीच संघर्ष प्रारम्भ हुआ
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संघर्ष का कारण
- अलाउद्दीन की साम्राज्य विस्तार की नीति
- रणथम्भौर दुर्ग का सामरिक महत्त्व
- रणथम्भौर दुर्ग का व्यापारिक मार्ग पर स्थित होना
- हम्मीर देव द्वारा अलाउद्दीन के भगौड़े सेनापतियों को शरण देना
- जियाउद्दीन बर्नी के अनुसार हम्मीर ने राजकर देना बन्द कर दिया था
- हम्मीर ने अलाउद्दीन के 2 विद्रोही मंगोल सेनापतियों मीर मुहम्मद शाह और केहब्रू को शरण दी थी अलाउद्दीन के गुजरात अभियान से वापिस लौटते समय ये दोनों विद्रोही लूट का माल लेकर हम्मीर की शरण में आ गए थे हम्मीर ने मुहम्मद शाह को ‘जगाना‘ की जागीर दी
- अलाउद्दीन ने हम्मीर को पत्र भेजकर लिखा कि आप शरणागतों को मार दो या हमें सौंप दो हम्मीर वचन का पक्का था उसने शरणागतों को सौंपने से मना कर दिया
- हम्मीर हठ के अनुसार संघर्ष का कारण- अलाउद्दीन के सेनापति मीर मोहम्मद शाह को सुल्तान की मराठा बेगम ‘चिमना‘ से प्यार हो गया था बेगम ने सेनानायक के साथ मिलकर अलाउद्दीन को मारने का षड़यंत्र रचा लेकिन खिलजी को इसका पता चल गया तब मुहम्मद शाह और बेगम दोनों भागकर हम्मीर की शरण में आ गए
- अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण – हम्मीर ने जब विद्रोहियों को लौटाने से इंकार कर दिया तब 1299 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने उलूगखाँ, नुसरत खाँ व अलपखाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना रणथम्भौर पर आक्रमण के लिए भेजी
- अलाउद्दीन की सेना ने झाईन दुर्ग पर अधिकार कर लिया
- हम्मीर की सेना ने इस आक्रमण में अलाउद्दीन की सेना को पराजित कर दिया इस युद्ध में हम्मीर ने स्वयं नहीं जाकर अपने सेनापतियों भीमसिंह और धर्मसिंह के नेतृत्त्व में सेना भेजी थी
- विजय के बाद जब हम्मीर की सेना वापिस लौट रही थी तब धर्मसिंह की टुकड़ी आगे चल रही थी व भीमसिंह की टुकड़ी पीछे चल रही थी तभी अलाउद्दीन की सेना की एक टुकड़ी जो पहाड़ियों में छुपी हुई थी, उसने अलप खाँ के नेतृत्त्व में भीमसिंह पर आक्रमण किया इस युद्ध में भीमसिंह मारा गया
- हम्मीर ने भीमसिंह की मृत्यु के लिए धर्मसिंह को जिम्मेदार माना और धर्मसिंह को अंधा करवा दिया धर्मसिंह की जगह उसके भाई भोज को सेनापति नियुक्त किया लेकिन भोज अपना दायित्व अच्छे से नहीं निभा पाया तब हम्मीर ने धर्मसिंह को पुनः सेनापति बना दिया
अलाउद्दीन का पुनः आक्रमण
- इस बार अलाउद्दीन ने नुसरत खाँ के नेतृत्त्व में अपनी सेना रणथम्भौर पर आक्रमण के लिए भेजी तथा उलूगखाँ भी साथ था खिलजी की सेना रणथम्भौर जीतने में असफल रही व नुसरत खाँ भी मारा गया
- जब अलाउद्दीन को इस स्थिति का पता चला तो वह एक विशाल सेना लेकर आया और रणथम्भौर दुर्ग पर घेरा डाल लिया लगभग 1 साल तक घेरा डाले रखने के बावजूद अलाउद्दीन की सेना को कोई सफलता नहीं मिली
- अन्त में अलाउद्दीन ने छल से काम लिया अलाउद्दीन ने हम्मीर के सेनापति रणमल व रतिपाल को लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया
- अमीर खुसरो ने लिखा है कि दुर्ग में सोने के दो दानों के बदले चावल का एक दाना भी नसीब नहीं हो रहा था
- लम्बे समय से चल रहे घेरे के कारण रणथम्भौर दुर्ग में खाद्यान्न व गोला बारूद की कमी हो गई थी
- रणमल व रतिपाल ने दुर्ग के खाद्यान्न में हड्डियाँ मिलाकर अपवित्र करवा दिया ऐसी स्थिति में हम्मीर ने लड़ते हुए मरना उचित समझा 11 जुलाई 1301 ई. को वीरों ने केसरिया व हम्मीर की रानी रंगदेवी के नेतृत्त्व में जौहर हुआ यह राजस्थान का प्रथम साका था
- रानी रंगदेवी व उसकी पुत्री देवलदे ने पद्मला तालाब में कूदकर जौहर किया था ऐसा उदाहरण राजस्थान में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता यह राजस्थान का प्रथम जल जौहर माना जाता है
- हम्मीर के नेतृत्व में वीरों ने अलाउद्दीन की सेना से घमासान युद्ध किया हम्मीर लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ कुछ विद्वान किले में स्थित त्रिनेत्र गणेश मन्दिर के पीछे स्थित शिव मंदिर में हम्मीर द्वारा अपना शीश चढ़ाना भी लिखते हैं 11 जुलाई 1301 ई. को रणथम्भौर पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया
- अलाउद्दीन ने इस विजय के बाद मंदिरों व मति आदेश दिया इस युद्ध में अलाउद्दीन के साथ इतिहासकार अमीर खुसरो भी साथ था इस विजय के बाद अमीर खुसरो ने कहा- “आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया है”
- युद्ध के बाद मुहम्मद शाह व केहब्रू को घायल अवसर अलाउद्दीन के सामने लाया गया तब अलाउद्दीन ने दोनों की हत्या करवा दी हम्मीर के विद्रोही सेनापति रणमल व रतिपाल को भी अलाउद्दीन ने मरवा दिया रणथम्भौर की विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने यह दुर्ग ‘उलूगखाँ‘ के अधिकार में सौंप दिया
- हम्मीर की मृत्यु के साथ ही रणथम्भौर के चौहानों का राज्य समय समाप्त हो गया
- 32 खम्भों की छतरी – हम्मीर ने अपने पिता जैत्रसिंह के 32 वर्षों के शासन की याद में रणथम्भौर किले में 32 खम्भों की एक छतरी बनवाई जिसे ‘जैत्रसिंह की छतरी/न्याय की छतरी भी कहा जाता है हम्मीर ने इस किले में हम्मीर महल व पद्मला तालाब का भी निर्माण करवाया
- हम्मीर के दरबार में ‘बीजादित्य‘ नामक कवि था
- हम्मीर देव चौहान को रणथम्भौर का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है हम्मीर को 16 युद्धों का विजेता कहा जाता है 17वें युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी से लड़ते हुए मारा गया हम्मीर अपने हठ व शरणागत रक्षा के लिए जाना जाता है हम्मीर के बारे में एक दोहा प्रसिद्ध है
“सिंह सवन, सत्पुरूष वचन, कदली फलत इकबार
तिरिया-तेल, हम्मीर-हठ चढ़े न दूजी बार ”
हम्मीर के बारे में जानकारी निम्न ग्रन्थों से मिलती है –
- 1. हम्मीर महाकाव्य – नयनचन्द्र सूरी
- 2. हम्मीर हठ – चन्द्रशेखर
- 3. हम्मीर हठ – ग्वाल कवि
- 4. हम्मीर रासो – शारंगधर (13वीं शताब्दी में रचित)
- 5. हम्मीर रासो – जोधराज (18वीं शताब्दी में रचित)
- 6. हम्मीरायण – भांडऊ व्यास
- 7. सुर्जन चरित्र – चन्द्रशेखर
- 8. हम्मीर मद मर्दन – जयसिंह सूरी
हम्मीर बंधन – अमृत कैलाश