कोटा राज्य के चौहान : कोटा प्रारम्भ में बूंदी राज्य का ही भाग था। बूंदी शासक राव भोज ने अपने पुत्र हृदय नारायण को कोटा का शासक नियुक्त कर अकबर से स्वीकृति प्राप्त कर ली थी। इस स्वीकृति से कोटा का स्वतंत्र अस्तित्व हो गया।
- बूंदी के शासक राव रतनसिंह के शासकाल में भी हृदय नारायण बँदी के अधीनस्थ शासक के रूप में शासन कर रहा था। खर्रम के विद्रोह (1623 ई.) के दौरान सूसी के युद्ध में हृदय नारायण युद्ध क्षेत्र से भाग गया। तब जहाँगीर ने कोटा राज्य उससे छीन लिया।
- राव रतनसिंह ने कोटा का प्रशासन अपने हाथ में लेकर 1624 ई. में अपने पुत्र माधोसिंह को कोटा का राजा बना दिया। राव रतनसिंह की बुरहानपुर में मृत्यु होने के बाद शाहजहाँ ने माधोसिंह को कोटा का शासक स्वीकार कर लिया।
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राव माधोसिंह (1631-1648 ई.)
- यह कोटा राज्य का पहला स्वतंत्र एवं विधिवत् शासक था। इसके शासनकाल में मुगल राज्य की दृष्टि से हाड़ौती क्षेत्र की शक्ति का केन्द्र बूंदी न होकर कोटा हो गया था।
- इसने खानेजहाँ लोदी (1631 ई.) और जुझार सिंह बुन्देला (1635 ई.) के विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मुग़ल सेना के साथ रहकर कन्धार अभियान व मध्य एशिया के अभियान में भाग लिया। शाहजहाँ ने इसे ‘बाद रफ्तार‘ घोड़ा पुरस्कार स्वरूप दिया।
राव मुकुन्द सिंह (1648-1658 ई.)
- यह मुगल उत्तराधिकार संघर्ष में शहजादे दारा के पक्ष में लड़ते हुए धरमत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।
- अबला मीणी का महल (कोटा) – राव मुकुन्द सिंह ने अपनी पासवान अबला मीणी के लिए यह महल बनवाया था।
राव जगतसिंह (1658-1883 ई.)
- यह औरंगजेब के दक्षिण अभियान में मुगल सेना के साथ था और दक्षिण में ही इसकी मृत्यु हो गई।
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राव प्रेमसिंह (1683-1684 ई.)
- इनके बारे में कोई विशेष वर्णन नहीं मिलता है
राव किशोर सिंह प्रथम (1684-1696 ई.)
- इसका अधिकांश समय शाही सेना के साथ दक्षिण भारत में मराठों के साथ संघर्ष में बीता और वहीं उसकी मृत्यु हो गई।
- इन्होंने कोटा में किशोर सागर तालाब व चाँदखेड़ी (झालावाड़) में जैन मन्दिर का निर्माण करवाया।
राव रामसिंह (1696-1707 ई.)
- आंबा के युद्ध में अपने भाई बिशनसिंह व हरनाथ सिंह को हराकर कोटा का शासक बना।
- इसने रामपुरा बाजार, रामपुरा दरवाजा, रामगंज, रांवठा तालाब, शहरपनाह, सूरजपोल का निर्माण करवाया।
- रायगढ़ पर मुगल अधिकार स्थापित करने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। औरंगजेब के पुत्रों में हुए उत्तराधिकर संघर्ष में यह शहजादा आजम की तरफ से लड़ता हुआ जाजउ के युद्ध (1707 ई.) में मारा गया।
महाराव भीमसिंह प्रथम (1707-1720 ई.)
- इसके पिता रामसिंह ने उत्तराधिकार संघर्ष में शहजादा आजम का साथ दिया था। अतः मुअज्जम के विजयी होने पर उसने बूंदी के शासक राव बुद्धसिंह को कोटा पर आक्रमण के लिए प्रोत्साहित किया लेकिन बूंदी की सेनाएँ परास्त हुई।
- फर्रुखसियर ने इसे 5000 का मनसब दिया। मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने इसे महाराव का खिताब दिया।
- भीमसिंह ने 1713 ई. में बूंदी पर आक्रमण कर उनका राजकोष लूटा, धूड़धाणी व कड़क बिजली तोपें छीन लाया।
- इसका सैय्यद बन्धुओं से अच्छे सम्बन्ध थे। सैय्यद बन्धुओं के पक्ष में निजाम से लड़ता हुआ कुरवई के युद्ध (1720 ई.) में मारा गया।
- महाराव भीमसिंह कृष्ण भक्त था। स्वयं को कृष्णदास कहलाना पंसद करता था।
- इसके शासनकाल में कोटा राज्य का सर्वाधिक विस्तार था। इसने भीमगढ़ का किला, भीमविलास, बृजनाथ जी मन्दिर व आशापुरा जी का मन्दिर बनवाया।
राव अर्जुनसिंह (1720-1723 ई.)
- मगल सम्राट मुहम्मद शाह ने इसे खिलअत, फरमान, हाथी घोड़े आदि देकर सम्मानित किया था।
राव दुर्जनशाल (1723-1756 ई.)
- इसने प्रारम्भ में मुगलों से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखें। इसके समर में कोटा राज्य से मुगल प्रभाव समाप्त होकर मराठा सभी स्थापित हुआ।
- जगमंदिर पैलेस – राव दुर्जनशाल ने अपनी सिसोदिया रानी ब्रत कंवर के लिए 1740 ई. में किशोर सागर तालाब में जगमंदिर महल का निर्माण करवाया।
राव अजीतसिंह (1756-1757 ई.)
- अल्प समय के लिए कोटा का शासक बना।
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राव शत्रुशाल प्रथम (1757-1764 ई.)
- भटवाड़ा का युद्ध – शत्रुशाल प्रथम के समय मुगल बादशाह अहमद शाह ने कोटा राज्य के अधीन आने वाले रणथम्भौर दुर्ग को जयपुर के माधोसिंह प्रथम को दे दिया। जिससे नाराज होकर कोटा की सेना ने झाला जालिम सिंह के नेतृत्त्व में नवम्बर 1761 ई. में भटवाड़ा (बारा) का युद्ध में जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह प्रथम को हराया। इस युद्ध की जानकारी शत्रुशाल रासो (डूंगरसी) में मिलती है।
- भटवाड़ा युद्ध में विजय का श्रेय कोटा राज्य के दीवान झाला जालिम सिंह को दिया जाता है। जालिम सिंह ने पिण्डारियों व मराठों से मित्रता कर कोटा राज्य की रक्षा की।
झाला जालिम सिंह
- राजस्थान के इतिहास का एक चर्चित व्यक्तित्त्व था।
- यह कोटा राज्य का दीवान था।
- जालिम सिंह को ‘कोटा राज्य का दुर्गादास राठौड़‘ कहा जाता है।
- झालरापाटन कस्बे का नाम झाला जालिम सिंह के नाम पर रखा गया था।
- झालरापाटन की स्थापना 1779 ई. में जालिम सिंह ने ही की थी।
- 1762 से 1768 ई. तक जालिम सिंह मेवाड़ राज्य की सेवा में रहा।
- मेवाड़ महाराणा ने इसे ‘राजराणा‘ की उपाधि दी।
राव गुमानसिंह (1764-1770 ई.)
- गुमानसिंह ने झाला जालिमसिंह को कोटा राज्य से निष्कासित कर उसकी नान्ता जागीर जब्त कर ली थी। लेकिन मराठा गतिविधियों से कोटा राज्य पर संकट आने पर राव गुमानसिंह ने मराठा वकील लालाजी बल्लाल के मध्यस्था से जालिम सिंह का पुनः कोटा बुलाया और अपने नाबालिग पुत्र उम्मेदसिंह का संरक्षक नियुक्त किया
सराव उम्मेदसिंह प्रथम (1770-1819 ई.)
- इनके समय कोटा राज्य के दीवान व प्रशासक झाला जालिम सिंह थे। उम्मेदसिंह प्रथम के समय झाला जालिमसिंह की शक्ति और निरकुंशता अपने चरम पर थी।
- इसने मराठों को धन देकर तथा अपनी कूटनीति से कोटा राज्य को मराठों से सुरक्षित रखा। झाला जालिमसिंह ने अपनी युक्तियों से कोटा राज्य को पिंडारियों से बचाए रखा। उसने सबसे पहले लोगों को छोटी-छोटी जागीरें देकर राज्य की सीमा पर बसा दिया, इन लोगों ने पिंडारियों को वापिस धकेलने का कार्य किया। अमीर खाँ पिण्डारी की माता व बेगमों को कोटा राज्य में शेरगढ़ किले (वर्तमान बारा) में रखा।
- राव उम्मेदसिंह ने 26 दिसम्बर 1817 ई. को अंग्रेजों से संधि कर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली। इस संधि में महाराव उम्मेदसिंह और उसके वंशज कोटा राज्य के शासक रहेंगे। झाला जालिमसिंह ने अंग्रेजों से एक गुप्त संधि करके कोटा राज्य के प्रशासनिक अधिकार स्वयं व अपने वंशजों के लिए सुरक्षित कर लिए।
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सराव किशोर सिंह द्वितीय (1819-1828 ई.)
- किशोर सिंह व झाला जालिम सिंह के मध्य कोटा राज्य की प्रशासनिक शक्तियों को लेकर मतभेद हो गया। 1 अक्टुबर 1821 ई. को जालिमसिंह और राव किशोर सिंह के मध्य मांगरोल (बारा) का युद्ध हुआ। जिसमें कर्नल टॉड ने झाला जालिम सिंह की सहायता की। राव किशोर सिंह की इस युद्ध में हार हुई।
- पराजय के बाद किशोर सिंह नाथद्वारा चला गया तथा कोटा राज्य श्रीनाथ जी को समर्पित कर दिया। मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह द्वितीय की मध्यस्था से दिसम्बर 1822 में राव किशोर सिंह पुनः कोटा लौटा।
- 1824 ई. में झाला जालिम सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र मदनसिंह को कोटा राज्य का फौजदार बनाया गया।
राव रामसिंह द्वितीय (1828-1865 ई.)
- झालावाड़ राज्य की स्थापना- इनके शासनकाल में अंग्रेजों ने 1837 ई. में कोटा राज्य से 17 परगनों को अलग कर नए झालावाड़ राज्य की स्थापना की और झाला मदनसिंह को यहाँ का शासक बनाया। अंग्रेजों ने 1838 ई. में इसे रियासत की मान्यता दी।
- 1857 की क्रांति – 15 अक्टूबर 1857 ई. को कोटा में जयदयाल व मेहराब खाँ के नेतृत्त्व में विद्रोह हुआ। विप्लवकारियों ने मेजर बटेन की हत्या कर दी व महाराव रामसिंह द्वितीय को महलों में नजरबन्द कर दिया।
- मार्च 1858 में मेजर जनरल रॉबर्ट्स व करौली शासक मदनपाल सिंह की सेना ने कोटा को आजाद करवाया। लापरवाही बरतने के आरोप में महाराव रामसिंह द्वितीय की तोपों की सलामी 17 से घटाकर 13 कर दी गई।
राव शत्रुशाल द्वितीय (1865-1888 ई.)
- इनके समय में कोटा राज्य में प्रशासन पर अग्रेजों का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया था। महाराव केवल नाममात्र का शासक था।
- इस दौरान अंग्रेजों का कृपापात्र फैज अली खाँ कोटा का प्रशासक था। जो कोटा का दूसरा झाला जालिमसिंह सिद्ध हुआ।
राव उम्मेद सिंह द्वितीय (1888-1940 ई.)
- यह कोटड़ा के जागीरदार छगनसिंह का पुत्र था। इन्होंने मेयो कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने सदैव ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा और भक्ति का परिचय दिया। कोटा राज्य में इनके समय में आधुनिकीकरण के काफी कार्य हुए।
- कोटा राज्य के जो 17 परगने झालावाड को दिए गए थे उनमें से 15 परगने 1 जनवरी 1899 को पुनः कोटा में मिला दिए गए।
- इनके शासनकाल में वायसराय लार्ड कर्जन कोटा आया। वह कोटा आने वाला प्रथम वायसराय था।
राव भीमसिंह द्वितीय (1940-1948 ई.)
- यह कोटा के अंतिम शासक थे।
- राजस्थान के एकीकरण के दौरान 25 मार्च 1948 को कोटा को पूर्व राजस्थान की राजधानी बनाया गया व कोटा महाराव भीमसिंह द्वितीय को इस संघ का राजप्रमुख बनाया गया।
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