राजस्थान में प्रसिद्ध महिलाओं का योगदान

Join WhatsApp GroupJoin Now
Join Telegram GroupJoin Now

राजस्थान में प्रसिद्ध महिलाओं का योगदान के अंतर्गत ये अध्ययन करेंगे कि किस तरह राजस्थान की महिलाओं ने अपना योगदान दिया है

जीवन के प्रत्येक युग में महिलाओं के योगदान को मुलाया नहीं जा सकता. इतिहास इस बात का गवाह है कि किसी भी देश के स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा, हम राजपताना को वीरों की भूमि कहते हैं इन वीरों में हम राजपूताना के वीरांगनाओं का इतिहास भी पढ़ते हैं. राजपूताना की इस पावन भूमि पर अनेक महिलाओं का योगदान रहा.
राजपूताना की इन महिलाओं ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना महत्व पर्ण योगदान देकर अपना नाम सदैव के लिए सुनहरे अक्षरों में चिह्नित करवाया, राजपूताना की महिलाओं ने इस प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र पर अपनी अमिट छाप छोड़ी. राजपूताना में हम उन विशेष महिलाओं का योगदान पढ़ते हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर अपने राज्य को बचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में अनेक महिलाओं ने सांसारिक सुखों को त्यागकर अपने आप को भक्ति में समर्पित कर दिया. इसके अलावा राजस्थान के स्वाधीनता संग्राम में उन महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए कन्धे-से-कन्धा मिलाकर कार्य किया. इन महिलाओं ने राजस्थान के अनेक प्रजा मण्डलों के माध्यम से सफल आन्दोलन किए, जिनके प्रयासों से राजस्थान में एकीकरण का चरण प्रारम्भ हुआ और हमें एक स्थायी शासन देखने को मिला. हम इस अध्याय में ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण महिलाओं का उल्लेख इस सन्दर्भ में कर रहे हैं.

✍ रानी पद्मिनी
रानी पद्मिनी के बारे में ऐसी मान्यता है कि पदमिनी सिंघल द्वीप के राजा गन्धर्व सेन की पुत्री थी, जिसका विवाह चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ हुआ, रानी पद्मिनी अपनी विशिष्ट सुन्दरता के कारण प्रसिद्ध थी, दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया, उस आक्रमण का मुख्य उद्देश्य रानी पदमिनी को प्राप्त करना था, रानी पद्मिनी की सुन्दरता का बखान खिलजी से ‘राघव चेतन’ ने किया. इसी कारण 1303 ई. में चित्तौड़ का युद्ध हुआ, रानी पद्मिनी ने हजारों महिलाओं के साथ चित्तौड़ के दुर्ग में जौहर किया, जिसे चित्तौड़ का ‘प्रथम साका’ कहते हैं. राजस्थान में यह घटना प्रथम जौहर के नाम से जानी जाती है. कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि “राजपूत महिलाएँ मुस्लिम आक्रमणकारी के साथ जाने से अच्छा अपने आपको अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अग्नि में समर्पित होना श्रेष्ठ समझती थीं.”

✍ हाड़ी रानी
हाड़ी रानी राजस्थान के इतिहास में अपने मूल नाम ‘सलह कॅवर’ के नाम से जानी जाती है. बूंदी के जागीरदार संग्रामसिंह की पुत्री जिसका विवाह सलम्बर (उदयपुर) के राजा राव रतनसिंह चूडावत के साथ हआ विवाह के कछ समय पश्चात मेवाड के शासक राजसिंह के आदेश पर औरंगजेब के विरुद्ध सेना का नेतृत्व करने के लिए चूड़ावत को युद्ध में जाना था, रतन सिंह चूड़ावत ने निशानी के तौर पर अपनी पत्नी हाडी रानी से कुछ माँगा, तब हाडी रानी ने बतौर निशानी के तौर पर अपना शीश काटकर चूड़ावत के लिए पहुंचा दिया. इस घटना से चूड़ावत का सोया हुआ जमीर जाग उठा और मुगलों की सेना को परास्त किया ‘मेघराज मुकुल’ ने रानी हाड़ी के लिए लिखा है कि ‘चूड़ावत मांगी निशाणी सिर काट दियो क्षत्राणी’ इस प्रकार अपने पति के लिए शीश काट देना इस पारागना की राजपूताना में एक अनुपम घटना थी.

✍ हंसाबाई
हंसाबाई – मारवाड़ के राजकुमार रणमल की बहन जिसका विवाह मेवाड़ के वृद्ध शासक राणा लाखा के साथ तय हुआ. राजकुमारी हंसाबाई ने विवाह इसी बात पर तय किया कि मेरा पुत्र ही मेवाड़ का उत्तराधिकारी होगा, इस तरह मेवाड़ के कुँवर चूंडा को आजीवन अविवाहित की प्रतिज्ञा करनी पड़ी. इस कारण मेवाड़ के चूंडा को ‘राजस्थान का भीष्म’ कहा जाता है. चूंडा ने हंसाबाई के पुत्र को ही उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार किया. भारमली
मेवाड़ के रक्षक के रूप में भारमली नामक महिला का महत्वपूर्ण योगदान है. भारमली मारवाड़ के राव रणमल की प्रेमिका थी, राणा कुम्भा के समय जब रणमल का प्रभाव मेवाड़ के प्रशासन में अत्यधिक हो गया तथा रणमल राणा कुम्भा के निजी मामलों में हस्तक्षेप करने लगा, तब रणमल की प्रेमिका भारमली को लालच देकर मेवाड़ में मिलाया गया भारमली के षड्यन्त्र द्वारा रणमल की हत्या कराई गयी.

✍ शृंगार देवी
शृंगार देवी मारवाड़ शासक राव जोधा की पुत्री थीं, इनका महत्वपूर्ण योगदान दो राज्यों की कटुता को समाप्त करना था, जब मेवाड़ के महाराणा राणा कुम्भा के समय रणमल की हत्या के उपरान्त मारवाड़ व मेवाड़ के बीच संघर्ष के बीच निहित हो गए. इस समस्या का समाधान राणा कुम्भा की दादी हंसाबाई के प्रयासों से एक सन्धि वार्ता हुई, जिसे राजस्थान के इतिहास में ‘ऑवल भाँवल’ की सन्धि के नाम से जाना जाता है. इस सन्धि की मुख्य विशेषता यह थी कि दोनों राज्यों की सीमा का निर्धारण हुआ एवं जोधा की पुत्री शृंगार देवी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ हुआ तथा शृंगार देवी ने ही ‘घोसुण्डी’ की प्रसिद्ध बाबड़ी का निर्माण करवाया, जो चित्तौड़ में देखी जाती है.

✍ रमाबाई
रमाबाई मेवाड़ के शासक राणा कुम्भा की पुत्री थी, रमाबाई का विशिष्ट योगदान संगीत एवं साहित्य में रहा, जिसके कारण इसे मेवाड़ की महान् संगीतज्ञ महिला कहा जाता है. साहित्य जगत् में रमाबाई को ‘वागीश्वरी’ के नाम से सम्बोधित किया है. इसका साक्ष्य हमें जावर शिलालेख से प्राप्त होता है. जावर का प्राचीन नाम ‘योगिनी पट्नम’ था, जिसका वर्णन हमें इसी शिलालेख में मिलता है. रमाबाई ने इसी स्थान पर रमाकुण्ड व जावरकुण्ड का निर्माण करवाया.

✍ कर्णवती/करमाबती
कर्णवती/करमाबती मेवाड़ महाराणा सांगा की पत्नी थी, राणा सांगा के पुत्र विक्रमादित्य के बचाव में करमावती ने मुगलों से संधि करना उचित समझा, सर्वप्रथम कर्णवती ने मुगल सम्राट बाबर से एक सन्धि की जिसके तहत् यदि बाबर विक्रमादित्य को चित्तौड़ का शासक बनाने में मदद करेगा तो ‘रणथम्भौर का दुर्ग’ बाबर को दे दिया जाएगा, लेकिन यह सन्धि व्यवहार में क्रियान्वित न हो सकी, क्योंकि 1530 में मुगल सम्राट् बाबर की मृत्यु हो गई. इसी समय गुजरात के शासक बहादुर शाह का चित्तौड़ पर आक्रमण हुआ आर रानी कर्णवती ने पूर्व सन्धि के आधार पर मुगल सम्राट् हुमायूँ से सहायता लेने के लिए राखी भेजी, लेकिन हुमायूँ चित्तौड़ न आ सका, राणी कर्णवती ने युवराज विक्रमादित्य को सुरक्षित बूंदी राज्य में भेज दिया, कर्णवती ने ‘रावत बाघसिंह’ को अपनी सेना का प्रतिनिधि नियुक्त किया इस संघर्ष में गुजरात के शासक बहादुरशाह की जीत हुई, बाघसिंह वीरता से लड़ता हुआ युद्ध में मारा गया राणी कर्णवती ने चित्तौड़ दुर्ग में 1534 में जौहर रचा, जिसे चित्तौड का ‘दूसरा साका’ कहते है.
रावत बाघसिंह का स्मारक चित्तौड़ दुर्ग में देखा जाता है, जो उसके बलिदान का प्रतीक है

✍ रूपाधाय, गोराधाय
रूपाधाय, गोराधाय के बारे में पता चलता है कि जिस प्रकार मेवाड़ में पन्नाधाय का गौरवपूर्ण इतिहास है ठीक उसी प्रकार मारवाड़ में राठौड़ वंश के लिए रूपा धाय व गोरा धाय का अपना विशिष्ट गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. रूपाधाय ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर जसवन्त सिंह तथा गोराधाय ने अजीत सिंह की रक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया. रूपाधाय को जसवन्त सिंह की धाय के रूप में जाना जाता है तथा रूपाधाय की पुत्री का नाम गोरा धाय था, जिसने अजीत सिंह को दिल्ली में औरंगजेब को शाही दरबार में से गुप्त रूप से निकालने में मदद की गोरा धाय का सबसे विशिष्ट योगदान अपने पुत्र को अजीत सिंह के बदले सुला दिया था, जिससे बादशाह को अजीतसिंह के जाने का पता न लग सके. इस प्रकार गोराधाय ने पन्नाधाय की तरह अपने पुत्र का बलिदान करते हुए अपना नाम ‘मारवाड़ की पन्ना’ में सुनहरे अक्षरों में लिखवाया
गोराधाय मनोहर मलावत की धर्मपत्नी थी. 1704 ई. में यह सती हो गई और अपने अपूर्व त्याग बलिदान स्वामी भक्ति के कारण इसका नाम मारवाड़ के इतिहास में ‘धूंसा गीतों’ में शामिल किया गया. वर्तमान में जोधपुर की महिलाओं द्वारा धूसा गीतों का आयोजन गोराधाय की स्मृति में किया जाता है.
रूपाधाय व गोराधाय की छतरियाँ / स्मारक जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग में देखी जाती हैं.

✍ पन्नाधाय
पन्नाधाय चित्तौड़ के पास माताजी की पांडोली गाँव के निवासी हरचन्द हॉकला की पुत्री एवं सूरजमल चौहान की पत्नी थी. पन्नाधाय अपने बलिदान के रूप में चर्चित रही. पन्नाधाय ने मेवाड़ की रक्षा करते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान किया. पन्नाधाय राजकुमार उदयसिंह द्वितीय (रानी कर्मावती के पुत्र) को दासीपुत्र बनवीर से बचाया. पन्नाधाय उदयसिंह को लेकर ‘कुम्भलमेरू’ पहुँची तथा 1537 ई. में महाराणा उदयसिंह का ‘कुम्भलगढ़’ में राज्याभिषेक हुआ इस तरह पन्नाधाय इतिहास में स्वामी भक्ति के लिए प्रसिद्ध है. पन्नाधाय की स्मृति में एक छतरी/स्मारक का निर्माण जयपुर से दूर भानगढ़ (अलवर) में हुआ.

✍ धीरबाई
धीरबाई मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की रानी धीरबाई को राजपूताना के इतिहास में ‘रानी भटियाणी’ के नाम से जाना जाता है. इसके प्रमाणस्वरूप महाराणा उदयसिंह ने जगमाल को अपना उत्तराधिकारी स्वीकार किया.

✍ नौजूबाई
नौजूबाई मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह प्रथम की धाय के रूप में नौजूबाई का इतिहास महत्वपूर्ण है, राणा जगतसिंह ने धाय की परम्परा को बनाए रखने के लिए अपने जगत मन्दिर के समीप ही नौजूबाई का एक मन्दिर बनवाया जिसे धाय मन्दिर के नाम से जाना जाता है. यह मन्दिर उदयपुर में देखा जाता है. 1651 ई. में में काले पत्थर जगतसिंह ने इस मन्दिर का निर्माण कराया मन्दिर की जगन्नाथ की मूर्ति है, जो जगदीश मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है

✍ चारूमति
चारुमति किशनगढ़ की राजकुमारी थी, जिसका विवाह सम्राट औरंगजेब के साथ तय हुआ, लेकिन मेवाड के महाराणा राजसिंह के साथ 1660 ई में चारुमति ने अपनी स्वेच्छा से विवाह किया औरंगजेब तथा राजसिंह के बीच युद्ध का प्रमुख कारण चारुमति का विवाह था 1664ई में औरंगजेब ने मेवाड से जजिया कर वसूला तथा मेवाड पर आक्रमण किया

✍ चन्द्रकुंवरी बाई
मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह द्वितीय की पुत्री चन्द्रकुवरी बाई का विवाह जयपुर राज्य के सवाई जयसिंह के साथ देवारी समीर के तहत् हुआ जिसमें यह तय किया गया कि सवाई जयसिंह के पश्चात् चन्द्रकुंवरी का पुत्र सवाई माधोसिंह जयपुर का शासक होगा, लेकिन सवाई जयसिंह की दूसरी रानी से उत्पन्न पुत्र ईश्वरीसिंह भी जयपुर उत्तराधिकारी होना चाहता था इस प्रकार जयपुर राज्य के लिए कलह के बीज निहित हो गये जिसका समापन युद्ध के द्वारा हुआ.

✍ कृष्णा कुमारी
मेवाड का विवादास्पद अध्याय एवं मेवाड का द्वितीय कलंक के रूप में कृष्णा कुमारी विवाद को जाना जाता है, कृष्णा कुमारी मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह की पुत्री थी जिसका विवाह मारवाड़ के भीम सिंह के साथ तय हुआ, लेकिन मारवाड़ शासक भीमसिंह की मृत्यु के बाद ही कृष्णा कुमारी का विवाह जयपुर के जगतसिंह के साथ तय हुआ. यह घटना मारवाड़ के मानसिंह को सही नहीं लगी तथा इसने कृष्णा कुमारी से विवाह करने की पहल की, इस तरह जयपुर तथा जोधपुर के बीच युद्ध का कारण बना. स्थिति यह हो गई कि दोनों राज्यों की सेना के मध्य ‘गिंगोली का युद्ध’ हुआ, इस युद्ध में अमीर खाँ पिंडारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही. जयपुर के महाराजा जगत सिंह ने जोधपुर की सेना को पराजित किया फिर भी यह विवाद नहीं थमा, अतः मेवाड़ के सूबेदार अजीत सिंह चूडावत तथा अमीर खा पिण्डारी द्वारा मेवाड़ की रानी कृष्णा कुमारी को जहर दे दिया गया और यह घटना मेवाड़ के लिए कालिख के समान हो गई.

✍ हरकाबाई
आमेर रियासत के राजा भारमल की पुत्री हरकाबाई जिसका विवाह 1562 ई. में मुगल सम्राट अकबर के साथ हुआ, इन दोनों का विवाह सांभर नामक स्थान पर सम्पन्न हुआ. हरकाबाई को ही मुगल राज्य में ‘मरियम उज्मानी’ के नाम से जाना गया, इसके साथ ही राजस्थान की अनेक पुस्तकों में इसे जोधाबाई के नाम से सम्बोधित किया गया है जहाँगीर हरकाबाई का पुत्र था.

✍ मानबाई
आमेर रियासत के भगवानदास की पुत्री मानबाई का विवाह अकबर के पुत्र सलीम (जहाँगीर) के साथ सम्पन्न हुआ, मुगल दरबार में मानबाई को ‘सुल्तान-ए-निशा’ के नाम से जाना जाता था.

✍ रानी कनकावती
मानसिंह प्रथम की पत्नी रानी कनकावती जिसने अपने पुत्र जगतसिंह की स्मृति में आमेर में ‘जगत शिरोमणि मन्दिर’ का
निर्माण करवाया, मुगल सम्राट अकबर ने जगतसिंह को ‘रायजादा’ की उपाधि से सम्मानित किया. अकबर ने जगतसिंह को कांगडा के अभियान पर नियुक्त किया तथा जगतसिंह ने कांगड़ा अभियान में कलाल खाँ को पराजित कर सेना का श्रेष्ठ संचालन किया. इस विजय के उपलक्ष्य में ही अकबर ने जगतसिंह को रायजादा की उपाधि दी.

✍ रसकपूर
आमेर शासक सवाई जगतसिह की प्रेमिका रसकपूर का प्रभाव पूर्णतः जयपुर की प्रशासनिक गतिविधियों पर रहा जगतसिंह रसकपुर के अति विशेष स्नेह के कारण प्रशासनिक कार्यों को करने में सफल नहीं हो सका, इस कारण जगतसिंह को कछवाह वंश का या जयपुर का ‘बदनाम शासक’ कहते हैं. जगतसिंह ने अपनी प्रेमिका रसकपूर के नाम के सिक्के भी ढलवाये.

✍ मूसी महारानी
रानी मूसी अलवर के शासक बख्तावर सिंह की पासवान थी, मूसी महारानी से उत्पन्न पुत्र बलवन्त सिंह को बख्तावर सिंह के दत्तक पुत्र विनय सिंह के साथ अंग्रेज अधिकारी नैडकॉक ने दोनों को बराबर का राज्य प्रदान किया. मूसी महारानी की छतरी का निर्माण बख्तावर सिंह के दत्तक पुत्र विनय सिंह ने करवाया. अलवर में यह ’80 खम्भों की छतरी’ कहलाती है. बाला दुर्ग की पहाड़ी के समीप यह छतरी मूसी कुण्ड के पास 80 खम्भों पर टिकी हुई है.

✍ गिन्दौली
मारवाड़ क्षेत्र में घुडला त्यौहार एवं घुडला नृत्य की परम्परा की नींव रखने वाली गिन्दौली थी, गिन्दौली ने गणगौर त्यौहार के साथ ही इस त्यौहार को प्रारम्भ किया. गिन्दौली को यह अनुमति राज जोधा के पुत्र राव सूजा ने प्रदान की, गिन्दौली अजमेर के मुस्लिम सेनापति घुडैल खाँ की पुत्री थी जिसको राव सातल उठाकर लाया और अपने जनानेखाना में डाल दिया सेनापति घुडैल खाँ ने अनेक बार गिन्दौली को छुड़ाने का प्रयास किया, लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई.

✍ कोड़मदे
कोड़मदे जोधपुर के शासक राव रणमल की पत्नी थी, कोड़मदे ने अपने नाम की एक प्रसिद्ध बाबड़ी का निर्माण बीकानेर के कोडमदेसर नामक स्थान पर करवाया, राजस्थान में इस बाबड़ी को पश्चिमी राजस्थान की सबसे प्राचीन बाबड़ी माना जाता है.

✍ रूठी रानी
जैसलमेर के राव लूणकरण की पुत्री राजकुमारी उमादे जिसका विवाह मारवाड़ के शासक राव मालदेव के साथ 1536 ई. में सम्पन्न हआ विवाह के कछ दिनों बाद ही उमादे ने अपने पति मालदेव का मुख नहीं देखा, इसी घटना से रानी उमादे को ‘रूठी रानी’ के नाम से जाना जाता है उमादे मारवाड़ को छोड़कर अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में रहने लगी, रूठी रानी ने अपना सारा जीवन इसी दुर्ग में बिता दिया, मालदेव की मृत्यु के बाद रूठी रानी भी सती हो गयी, उमादे की सुविधा के लिए राव मालदेव ने तारागढ़ दुर्ग में पानी खींचने के लिए रहट का निर्माण करवाया. रूठी रानी की छतरी अजमेर में देखी जाती है तथा एक अन्य रूठी रानी का महल माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है. अनेक प्रतियोगी पुस्तकों में यह तथ्य विवादस्पद है.

✍ जगत गुसाई
मारवाड़ के शासक मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री जिसका विवाह मुगल सम्राट् सलीम (जहाँगीर) के साथ हुआ, राव चन्द्रसेन
की मृत्यु के पश्चात् मुगल सम्राट अकबर ने 1583 ई. में मोटा राजा उदयसिंह को जोधपुर का शासक स्वीकार कर लिया. भारतीय इतिहास में जगत गुसाई का नाम मानवती, जोधा के नाम से उल्लेखित है

✍ अनारा बेगम
जोधपुर के महाराजा गजसिंह की पासवान अनारा बेगम थी, महाराजा अनारा से अत्यधिक प्रभावित थे, अनारा का प्रभाव सम्पूर्ण मारवाड की प्रशासनिक गतिविधियों में बढ़ता ही गया इस कारण गजसिंह ने अमरसिंह के स्थान पर जसवन्त सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया

✍ महारानी जसवन्त दे
महाराजा जसवन्त सिंह की पत्नी जो बूंदी के हाड़ा शासक शत्रुसाल की पुत्री थी. महारानी जसवन्त दे के सम्बन्ध में एक रोचक तथ्य यह है कि धरमत के युद्ध में जसवन्त सिंह की घायल अवस्था की स्थिति में जब राज्य में वापसी हुयी तब महारानी के आदेशानुसार जोधपुर किले के द्वार बन्द कर दिये गये, क्योंकि राजपूत युद्ध भूमि में या तो जीतकर आये या उसकी मृत्यु का समाचार आये, इस कारण महारानी जसवन्त दे को समझाने पर महारानी ने इन्हें शाही बर्तनों के बजाय काष्ठ (लकड़ी) के बर्तनों में भोजन कराया इस कारण महारानी जसवन्त दे राजस्थान के इतिहास में एक चर्चित रानी रही.

✍ इन्द्रकुँवरी बाई
जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह की पुत्री जिसका विवाह मुगल बादशाह फर्रुखशियर के साथ 1715 ई. में हुआ एवं इसके साथ ही जब बादशाह फर्रुखशियर की मृत्यु हुयी, उसके बाद पुनः इन्द्र कुँवरी बाई ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया, भारतीय इतिहास में फर्रुखशियर को ‘घृणित कायर’ के नाम से जाना जाता है.

✍ गुलाबराय
गुलाबराय जोधपुर के महाराजा विजयसिंह की पासवान थी, गुलाबराय को इतिहासकार व साहित्यकार कवि श्यामलदास ने अपने ग्रन्थ वीर विनोद में ‘नूरजहाँ’ के नाम से सम्बोधित किया इसलिए गुलाबराय को ‘मारवाड़ की नूरजहाँ’ कहते हैं. गुलाबराय ने जोधपुर में राणीसर सागर व गुलाब सागर नामक तालाबों का निर्माण करवाया.

✍ कर्पूरी देवी
अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय की माँ थी, पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर की मृत्यु के समय 1177 ई. में पृथ्वीराज की आयु 11 वर्ष की थी इसी समय इसने चौहान वंश की गद्दी को सँभाला, लेकिन प्रशासनिक गतिविधियाँ कपुरी देवी के हाथों में रही. कर्पूरी देवी ने अपने प्रधानमन्त्री कदमबाद तथा सेनापति भुवनमल के नेतृत्व में चौहान शासक को क्रियान्वित किया.

✍ रंग देवी
रणथम्भौर के शासक राजा हम्मीर देव चौहान की पत्नी जिसने राजपूताना के इतिहास में प्रथम जौहर किया, लेकिन यह जौहर जल जौहर की श्रेणी में आता है जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 ई. में रणथम्भौर पर आक्रमण किया और यहाँ के शासक हम्मीर देव चौहान को पराजित किया तब रंग देवी ने अनेक महिलाओं के साथ जल जौहर किया.

✍ लांछा कुंवरी
यह बाँसवाडा के शासक जगमल की रानी थी लाछा कवरी बाई ने बासवाडा में ‘बाई जा’ के तालाब का निर्मा _-_ तालाब राजपूताना म कमल के फूला के लिए पति बासवाडा क रावल शासक इस तालाब के किनारे और आते थे

✍ रानी प्रीमल दे
ढुंगरपुर के शासक रावल आसकरण की पत्नी प्रीमल दे जिसने डंगरपुर में ‘नौलखा बाबड़ी’ का निर्माण करवाया माना जाता है कि आसकरण ने बेणेश्वर मन्दिर का भी निर्माण करवाया

✍ रानी नाथावती
इन्होंने बूंदी में एक सुन्दर व विशाल बाबड़ी का निर्माण करवाया जिसे ‘रानीजी की बाबड़ी’ कहते हैं यह बूंदी के शासक अनिरुद्ध सिंह की पत्नी थी यह बाबड़ी राजपूताने की सबसे बड़ी एवं सुन्दर बाबड़ियों में से एक थी.

✍ अमली मीणी
कोटा के शासक मुकुन्दसिंह की पासवान के रूप में अमली मीणी को याद किया जाता है स्वयं मुकुन्द सिंह ने मुकुन्दरा नामक गाँव बसाकर अपनी पासवान अमली मीणी के लिए महल बनवाये. वर्तमान में इन महलों को दर्रा वन्य जीव अभयारण्य में देखा जाता है.

✍ अमृतादेवी विश्नोई
जोधपुर के शासक अभय सिंह के शासनकाल में वृक्षों के बचाव के लिए खेजड़ली गाँव में एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुई इस स्थान को विश्व स्तर पर पहचान मिली. अभय सिंह ने गिरधारी दास नामक व्यक्ति को भवन निर्माण हेतु लकड़ी काटने का आदेश दिया, इन वृक्षों के बचाव के लिए 1730 ई. को अमृतादेवी नामक महिला सामने आयी, अमृतादेवी ने वृक्षों की रक्षा के लिए 363 महिलाओं का जत्था लेकर आन्दोलन किया, जिसमें अनेक महिलाएं बलिदान हुईं खेजड़ली गाँव में आज भी विश्व का एकमात्र वृक्ष मेले का आयोजन होता है. यह मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी को लगता है, राज्य सरकार ने 1994 ई. का पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रदान किया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार “अमृता देवी वानिकी’ के नाम से प्रारम्भ किया.
राजपूताना में वृक्षों की रक्षा के लिए प्रथम घटना रामसडी (जोधपुर) के आन्दोलन को माना जाता है जहाँ विश्नोई सम्प्रदाय से सम्बन्धित ‘करमा-गोरा’ नामक महिलाओं ने 1604 ई में अपना बलिदान दिया.

✍ अंजनादेवी चौधरी
इनका जन्म सीकर जिले के श्रीमाधोपुर में 1897 ई. को मध्यम वर्गीय अग्रवाल परिवार में हुआ. अंजनादेवी राजस्थान सेवा संघ के सक्रिय नेता रामनारायण चौधरी की पत्नी थीं अंजनादेवी अपने पति के विचारों से प्रभावित थीं इसलिए उन्होंने आभूषणों को त्यागकर खादी पहनना प्रारम्भ किया, अजनादेवी चौधरी ने बिजौलिया एवं बेंगू किसान आन्दोलन में भी महिलाओं का नेतृत्व किया. अंजनादेवी ने महात्मा गांधी के साथ रहकर चरखा कातना सीखा, सर्वाधिक तेज गति से चरखा कातने का कीर्तिमान भी अंजनादेवी ने बनाया.

✍ सुजा राजपुरोहित
मारवाड की यह वीरगना महिला जिसने पुरुषों के वस्त्र धारण कर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह तथा शासिका रजिया मुल्लाना की तरह 1857 ई के स्वतंत्रता संग्राम में लाडन (नागौर नामक स्थान पर अंग्रेजी सेना से मुकाबला किया, इस मुकाबले में अंग्रेजी सैना की छोटी टुकड़ी को पराजित करने में सफलता प्राप्त की

✍ झलकारी बाई
इस वीरांगना महिला ने 1857 की क्रान्ति में रानी लक्ष्मीबाई का वेश बनाकर लक्ष्मी बाई के स्थान पर अंग्रेजी सेना से मुकाबला किया, राज्य सरकार ने अजमेर में झलकारी बाई का सुन्दर स्मारक बनान के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है झलकारी बाई राजस्थान का काला समाज के वीर बालिका के रूप में जानी जाती है.

जानकी देवी बजाज
राजस्थान के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज की धर्मपल्ली जिन्होंने अपने पति की प्रेरणा से तथा एक पारसी महिला के प्रभावस्वरूप पर्दा प्रथा को त्यागकर राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इन्होंने 1933 ई को कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन की अध्यक्षता की, भारत सरकार ने 1956 ई. को इन्हें पद्म विभूषण अलंकरण से सम्मानित किया, यह सम्मान पाने वाली वह राज्य की प्रथम महिला थी, जानकी देवी बजाज ने अपनी आत्मकथा लिखी, जिसे ‘मेरी जीवन यात्रा’ के नाम से जाना जाता है.

✍ नारायणी देवी वर्मा
राजस्थान के प्रजामण्डल एवं मेवाड के उत्थान के लिए सक्रिय योगदान देने वाले माणिक्य लाल वर्मा की धर्मपत्नी नारायणी देवी वर्मा ने जागीरदारों के अत्याचारों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, माणिक्य लाल वर्मा द्वारा गठित 1934 ई. में ‘खांडलाई आश्रम’ की स्थापना में इनकी पत्नी का महत्वपूर्ण योगदान रहा, नारायणी देवी वर्मा ने अपने जीवन में भीलों की शिक्षा के प्रसार के लिए अपना अमूल्य जीवन व्यतीत कर दिया. 1944 ई. को इन्होंने भीलवाड़ा में ‘महिला आश्रम’ की स्थापना की. इस संस्था का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी एवं उनके परिवारों को शिक्षित करना तथा उनका भरण पोषण करना शामिल था माणिक्य लाल वर्मा के साथ मिलकर 1952 ई. में डूंगरपुर में आदिवासी कन्या छात्रावास का गठन किया.

किशोरी देवी
सरदार हरलाल सिंह की पत्नी किशोरी देवी द्वारा अपने पति के साथ शेखावाटी क्षेत्र में जागीर प्रथा के विरोध में आन्दोलन में भाग लिया सीकर जिले के कटराथल नामक स्थान पर किशोरी देवी की अध्यक्षता में 25 अप्रैल, 1934 को एक विशाल महिला सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें क्षेत्र की 10,000 से अधिक जाट महिलाओं ने भाग लिया

दुर्गादेवी शर्मा
इन्होंने आजादी का शंखनाद फूंका और 1939 में जयपुर प्रजा मण्डल आन्दोलन के लिए झुंझुनूं से शेखावाटी की महिला सत्याग्रहियों का प्रथम जत्था लेकर सत्याग्रह करने गईं.

कालीबाई
डूंगरपुर की भील बालिका, रास्तापाल में अपने अध्यापक सेंगाभाई को मुक्त कराने के प्रयास में कुर्बान हुई. गैप सागर के निकट स्थित पार्क में कालीबाई की मूर्ति स्थित है।

नगेन्द्र बाला
कोटा की स्वतंत्रता सेनानी, 1941 से 1947 तक किसान आदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. ये राजस्थान की पहली महिला जिला प्रमुख भी बनी

मणि बहन पाण्ड्या
बांगड के गांधी के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भोगीलाल पाण्डया की पत्नी, इन्होंने स्वतत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई मणि बहन को ‘बांगड़ वा’ कहा जाता है.

लक्ष्मीदेवी आचार्य
बीकानेर के स्वतंत्रता सेनानी श्रीराम आचार्य की पत्नी, स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इन्होंने बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना में योगदान दिया. इन्होंने मारवाड़ी समाज में लोकमत जाग्रत किया. इन्हें कोलकाता में स्थापित बीकानेर प्रजामण्डल की अध्यक्षा बनाया गया.

सुमति झाली
ये राणा कुम्भा की महारानी थीं जिन्होंने रैदास को अपना गुरु बनाया. इनके लिए राणा कुम्भा ने कुम्भलगढ़ दुर्ग में ‘झाली रानी का मालिया महल’ बनवाया.

रानाबाई
मेवाड़ के हरनावा गाँव के जालम जाट की पुत्री थी. पालड़ी के संत चतुरदास खोजी की शिष्या थी. इन्होंने राधा सहित भगवान गोपीनाथ को हरनावा में स्थापित किया. इन्होंने 1570 ई. में जीवित समाधि ली.

गवरीबाई
डूंगरपुर में जन्मी, इन्होंने कृष्ण की पति रूप में उपासना की. डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने गवरीबाई के लिए 1829 ई. में बालमुकुन्द मन्दिर का निर्माण कराया. अन्तिम समय में गवरीबाई काशी चली गईं और वहाँ सं. 1865 के लगभग उनका देहावसान हो गया गवरीबाई को ‘मीरा का अवतार’ भी कहा जाता है.

मीराबाई
मीरा राठौड़ वंश के शासक रत्नसिंह एवं वीर कंवरी की पुत्री थीं. इनका जन्म ‘कुड़की’ नामक गाँव में हुआ. वर्तमान में यह गाँव पाली जिले में स्थित है. 1516 ई. में मीराबाई का विवाह उदयपुर के राजपूत शासक ‘भोजराज’ (महाराणा सांगा के पुत्र) के साथ हुआ. मीरा के निर्देशन में ‘रतना खाती’ द्वारा ब्रजभाषा की ‘नरसी जी रो मायरो’ नामक ग्रन्थ लिखा. मीराबाई ने ब्रजभाषा एवं राजस्थानी भाषाओं में कतिवाएँ लिखी मीरा की उपासना माधुर्य भाव । की थी. मीराबाई का बैकुण्ठधाम गमन 1546 ई. में द्वारिकापुरी में हुआ.

फूलीबाई
जोधपुर महाराजा जसवन्त सिंह की समकालीन इन्होंने । फूलीबाई को अपनी धर्म बहिन बनाया. फूलीबाई का सम्बन्ध जाट परिवार से था पालीबाई जोधपुर के महलों में रानियों को भायाधिक ज्ञान एवं उपदेश दिया करती थीं इस तरह जसवन्त सिंह फूलीबाई से अत्यन्त प्रभावित थे

सहजोबाई-दयाबाई
संत चरणदास की कषण गवत शिष्या, जो मध्यकालीन राजस्थान में प्रथम महिला महन्त थी इसी प्रकार दयाबाई भी चरणवारा की प्रमुख शिष्या थी जिन्होंने मेवात प्रदेश में धार्मिक विचारों का प्रचार प्रसार किया.

✍ कर्मठीबाई
बागल के पुरोहित कुल की कर्मठीबाई कृष्ण भक्त थी यह गोस्वामी हितहरी वंश की शिष्या थीं. यह मुगल सम्राट अकबर के समकालीन थी. इन्होंने अपना समय वृन्दावन में बिताया.

समानबाई चारण
अलवर के माहुन्द गाँव की समानबाई चरण भक्त रामनाथ कविराय की पुत्री थी इन्होंने जीवनपर्यन्त आँखों पर पट्टी बाँधे रखी, ताकि अन्य को न देख सके या संसार की भौतिक सुख सुविधाओं को न भोग सके. इस तरह इन्होंने अपना जीवन राधा कृष्ण की उपासना में लगा दिया. इस प्रकार राजपूताना में इसे महाभारत कालीन ‘गांधारी’ कहा जाता है.

✍ मंजू राजपाल
भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी ‘आदिवासियों की बाईजी’ के उपनाम से प्रसिद्ध मंजू राजपाल द्वारा अनाथ और बेसहारा बच्चों के लिए ‘अंबोली’ नामक गैर-सरकारी संस्था की स्थापना की. यह दूंगरपुर की जिला कलक्टर के पद पर कार्यरत् रहीं.

गायत्री देवी
जयपुर के महाराजा मानसिंह द्वितीय की महारानी, इन्होंने 12 अगस्त, 1943 को जयपुर में महारानी गायत्री देवी स्कूल की स्थापना की. 1950 में इस विद्यालय को इण्डियन पब्लिक स्कूल कॉन्फ्रेंस में शामिल किया गया एवं यह भारत में लड़कियों के प्रथम पब्लिक स्कूल के रूप में जाना गया.

नन्नीबाई
शेखावाटी दरबार की राज गायिका, जो खेतड़ी की सुप्रसिद्ध गायिका रहीं. स्वामी विवेकानन्द जब खेतड़ी में आये और सुनने से इनकार कर दिया तो नन्नीबाई के अनुरोध पर स्वामीजी को इन्होंने मीरा का पद सुनाया. स्वामी विवेकानन्द ने नन्नीबाई में देवी काली माँ का स्वरूप देखा और माफी माँगी.

गवरी देवी
पाली निवासी इन्होंने मांड गायकी को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया. यह महिला भैरवी युक्त मांड गायकी में प्रसिद्ध है. गुलाबो
कालबेलिया नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना इनका जन्म कोटड़ा अजमेर में हुआ. इन्हें राजस्थानी की कालबेलिया समाज की प्रथम अध्यक्ष बनाया गया.

अरुणा राय
इन्होंने सूचना के अधिकार के लिए व्याबर अजमेर से आन्दोलन किया, इन्हीं के परिणामस्वरूप सर्वप्रथम राजस्थान में सूचना का अधिकार लाग हुआ, जो देश में प्रथम था. अजमेर जिला
के ‘तिलोनिया’ गाँव के समाज कल्याण व अनुसंधान केन्द्र (SWRC) में कार्य किया. रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाली ये राजस्थान की प्रथम महिला है.

रत्ना शास्त्री
इनका जन्म 15 अक्टूबर, 1912 को खाचरोद (मध्य प्रदेश) में हुआ. इनका विवाह हीरालाल शास्त्री से हुआ, जो राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने. रत्ना शास्त्री ने महिला शिक्षा की ख्याति प्राप्त शिक्षण संस्था ‘वनस्थली विद्यापीठ’ (टोंक) का सफल संचालन किया. पद्मभूषण व पद्मश्री से सम्मानित होने वाली राजस्थान की प्रथम महिला थी.
 
खेतुबाई
बीकानेर मद्याराम वैद्य की बहन दूधवाखारा (चुरू) किसान आन्दोलन में सक्रिय आन्दोलन की भूमिका निभाई. खादी पर बल दिया तथा आजीवन खादी पहनने का व्रत लिया.

भूरीबाई
मेवाड़ की महिला संत सगुण-निर्गुण विचाराधारा से सम्बन्धित नाराबाई का प्रभाव पड़ा.

चर्चित महिलाओं के उपनाम

नाम                उपनाम
गवरीबाई    मीरा का अवतार
गुलाब रायजोधपुर की नूरजहाँ
हमीदा बानोउड़नपरी
सुरभि मिश्रास्क्वैश की सनसनी
मणि बहिन पाण्ड्यावांगड़ बा
विमला कौशिकपानी वाली बहिनजी
मीराराजस्थान की राधा
अल्ला जिला बाईराजस्थान की मरु कोकिला
रीमा दत्ताराजस्थान की जलपरी
नीलूराजस्थान की श्रीदेवी
सीमा मिश्राराजस्थान की लता
मंजू राजपालआदिवासियो की बाईजी
प्रवीण सुल्तानातारा सप्तक की रानी
वसुंधरा राजेआयरन लेडी
प्रतिभा पाटिलमराठा सुन्दरी, अपराजिता
REET 2021 की तैयारी के लिए निचे दी गयी क्विज को हल जरुर कीजिये
REET बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र क्विज – 1REET बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र क्विज – 2REET बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र क्विज – 3
REET बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र क्विज – 4REET बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र क्विज – 5
हिन्दी उपसर्ग टॉप 25 प्रश्नRevolt of 1857 (1857 का विद्रोह)प्रमुख वचन एवं नारे
महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दिवस

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!