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जालौर के चौहान | Jalor ke Chouhan Notes PDF

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जालौर के चौहान : जालौर के चौहान वंश का संस्थापक ‘कीर्तिपाल’ था बिजौलिया शिलालेख में जालौर को ‘जाबालिपुर’ कहा गया है जालौर के किले को सुवर्णगिरिसोनगढ़ कहा जाता है इसी कारण जालौर के चौहान ‘सोनगरा चौहान’ कहलाए

कीर्तिपाल (1181-1182 ई.)

  • जालौर में चौहान वंश की स्थापना 1181 ई. में कीर्तिपाल द्वारा की गई चौहानों की नाडोल शाखा के कीर्तिपाल ने जालौर को परमारों के अधिकारों से छीनकर जालौर में अपना स्वतंत्र राज्य प्रारम्भ किया

समरसिंह (1182-1205 ई.)

  • इसने जालौर में सुदृढ प्राचीर, कोषागार और शस्त्रागार का निर्माण करवाया समरसिंह ने गुजरात के भीमदेव द्वितीय (चालुक्य शासक) से अपनी पुत्री लीलादेवी का विवाह किया

उदयसिंह (1205- 1257 ई.)

  • उदयसिंह ने जालौर राज्य का विस्तार किया इसने इल्तुतमिश के आधिपत्य वाले मण्डौर और नाडोल पर अपना अधिकार किया तथा गुजरात के लवण प्रसाद को हराया इसके अलावा गोडवाड़ और मेवाड़ के कुछ भागों पर भी अधिकार स्थापित किया
  • 1228 ई. में दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश ने जालौर पर आक्रमण किया व जालौर दुर्ग पर घेरा डाला लेकिन अंत में दोनों के मध्य संधि हो गई
  • 1254 ई. में दिल्ली के सुल्तान नासिरूद्दीन महमूद ने जालौर पर आक्रमण किया लेकिन उसे परास्त होकर वापस जाना पड़ा

यह भी देखें : अजमेर का चौहान राजवंश

चाचिगदेव (1257-1282 ई.)

  • इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की यह नासिरूद्दीन महमूद व बलबन का समकालीन था, लेकिन इन्होंने चाचिगदेव पर आक्रमण का साहस नहीं किया

सामन्तसिंह (1282-1305 ई.)

  • चाचिगदेव के बाद उसका पुत्र सामन्तसिंह जालौर का शासक बना
  • इसके समय में 1291 ई. में जलालुद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया तब सारंगदेव बाघेला की सहायता से सामन्तसिंह ने इस आक्रमण को विफल कर दिया
  • सामन्तसिंह ने अपने जीवनकाल में ही अपने योग्य पुत्र कान्हड़दे को शासन की बागडोर सौंप दी थी

कान्हड़देव (1305-1311 ई.)

  • सामन्तसिंह चौहान का पुत्र था 1305 ई. में जालौर का शासक बना जालौर के चौहान शाराकों में कान्हड़देव सर्वाधिक शक्तिशाली था
  • इसके समय दिल्ली का शासक अलाउद्दीन खिलजी था

रास्ता देने से इनकार

  • कान्हड़दे प्रबन्ध के अनुसार 1298 ई. में सामन्तसिंह के काल में उलुग खाँ व नुसरत खाँ के नेतृत्त्व में गुजरात अभियान के लिए जा रही अलाउद्दीन की सेना को  कान्हड़देव ने अपने इलाके में से रास्ता देने से इनकार कर दिया इससे अलाउद्दीन खिलजी नाराज हो गया

अलाउद्दीन का आक्रमण

  • 1305 ई. में एन-उल-मुल्क-मुल्तानी के नेतृत्त्व में अलाउद्दीन ने अपनी शाही सेना को जालौर पर आक्रमण के लिए भेजा तब कान्हड़देव व अलाउद्दीन के मध्य संधि हो गई
  • फरिश्ता के अनुसार एन-उल-मुल्क-मुल्तानी कान्हड़देव को समझा-बुझाकर दिल्ली ले आए दिल्ली दरबार का वातावरण कान्हड़देव के स्वाभिमान के विरूद्ध था एक दिन सुल्तान ने हिन्दू शासकों की शक्ति को चुनौती दी
  • कान्हड़देव सुल्तान के शब्द सहन नहीं कर सका और सुल्तान को अपने विरूद्ध लड़ने की चुनौती देकर जालौर लौट आया और युद्ध की तैयारी करने लगा मुहणौत नैणसी के अनुसार संधि के बाद कान्हड़देव ने अपने पुत्र वीरमदेव को अलाउद्दीन के दरबार में भेजा था अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा वीरमदेव को चाहने लगी और विवाह की इच्छुक थी शादी के लिए दबाव बनाए जाने पर वीरमदेव वहाँ से जालौर लौट आया अलाउद्दीन ने इसे अपना अपमान समझा और जालौर पर आक्रमण करने के लिए सेना भेजी
  • सिवाणा पर आक्रमण – अलाउद्दीन की सेना ने सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्त्व में जुलाई 1308 ई. (फरिश्ता के अनुसार 1310) में सिवाणा किले पर आक्रमण किया यहाँ के शासक सीतलदेव (कान्हड़देव का भतीजा) था उसके सेनापति भावला पवार ने विश्वासघात किया, किले के प्रमुख जलस्रोत भाण्डेलाव तालाब को गोमांस से दूषित करवा दिया
  • इसके बाद सीतलदेव के नेतृत्त्व में वीरों ने केसरिया व मीणादे के नेतृत्त्व में महिलाओं ने जौहर किया विजय के बाद अलाउद्दीन ने सिवाणा का नाम ‘खैराबाद’ रखा और कमालुद्दीन को दुर्गरक्षक नियुक्त किया

यह भी देखें : नाडोल के चौहान

जालौर का साका 1311 ई.

  • सिवाणा विजय के बाद भी कान्हड़देव ने अधीनता स्वीकार नहीं की तो 1311 ई. में अलाउद्दीन की सेना ने जालौर दुर्ग पर घेरा डाल दिया। कान्हड़देव के सेनापति दहिया बीका ने दुर्ग पाने के लालच में आकर दुर्ग का गुप्त रास्ता शत्रु सेना को बता दिया।
  • सोनगरा शासक कान्हड़देव चौहान व उसके पुत्र वीरमदेव ने वीरता से मुकाबला किया और वीरगति प्राप्त की। कान्हड़देव की रानी ‘जेतलदे‘ के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर किया।
  • विजय के बाद अलाउद्दीन ने जालौर का नाम जलालाबाद रखा व परमार शासक भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण करवाया।
  • कान्हड़देव के भाई मालदेव सोनगरा ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली। जिसे बाद में चित्तौड़ किले का भार सौंपा गया।
  • कान्हड़देव प्रबन्ध के अनुसार कमालुद्दीन वीरमदेव का सिर काटकर दिल्ली ले गया जहाँ फिरोजा ने उसका विधिवत् दाह संस्कार करवाया और स्वयं ने भी यमुना में कूदकर जान दे दी।
  • ‘कान्हड़दे प्रबन्ध’‘वीरमदेव सोनगरा री बातां’ की रचना | पद्मनाभ ने अखयराज के शासनकाल में की है।

यह भी देखें : राजस्थान इतिहास Handwritten Notes PDF 

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