प्रागैतिहासिक काल में राजस्थान

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नमस्कार प्रिय विद्यार्थियों आज की इस पोस्ट में आपको राजस्थान के प्रागैतिहासिक काल के बारे में बताया गया है , जिसकी मदद से आप अपनी तैयारी को बेहतर कर सकते हो ,इसी तरह का ओर मेटर प्राप्त करने क लिए आप हमारी वेबसाइट www.exameguru.in  को समय – समय पर विजिट करते रहे

∎ अध्ययन में सुविधा की दृष्टि से विद्वानों ने अतीत में मानव द्वारा किए गये सभी कार्यों को दो भागों में विभाजित किया है

*इतिहास- जब से मानव ने लिखना पढ़ना सीखा तब से वर्तमान काल तक के क्रियाकलापों को इतिहास में सम्मिलित किया गया है।
* प्राक इतिहास- इतिहास से पूर्व के मानव के क्रियाकलापो को ‘प्राक् इतिहास’ के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है।


∎ मानव के पृथ्वी पर प्रादुर्भाव से प्रारंभ होकर जबसे उसने पढ़ने-लिखने का ज्ञान प्राप्त किया, तब तक के क्रियाकलापों को ‘प्रागैतिहास’ कहा जा सकता है और इसी कालखण्ड को ‘प्रागैतिहासिक काल’ कहते है।


∎ विश्व के संदर्भ में लेखन कला का आविष्कार 3000 ई.पू. से पहले पश्चिम एशिया में स्थित मेसोपाटामियाँ सभ्यता में दिखाई देता है और यह लिपि पढ़ी जा चुकी है। लेकिन 9 भारतीय क्षेत्र में स्थित तत्कालीन हड़प्पा सभ्यता में प्रचलित लिपि अभी तक निर्विवादित रूप से पढ़ी नहीं जा सकी है। * परन्तु यह स्पष्ट है कि हड़प्पा संस्कृति के निवासी पढ़ना लिखना जानते थे।

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प्रागैतिहासिक काल

∎ भारत में प्रागैतिहासिक युगीन सभ्यता का विकास प्लाइस्टोसीन काल या हिमयुग में हुआ।


∎ प्रारंभिक काल में मानव रहते रहे थे, उनके विषय में ठीक ठीक, सही तौर पर और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए उन स्थलों पर बहुत सावधानी पूर्वक खुदाई की गई। इस खुदाई में उनके द्वारा प्रयोग में ली गई सामग्री के अवशेष प्राप्त हुए, जैसे उनके औजार, बर्तन तथा जानवरों की अस्थियाँ  आदि।


* इनमें सबसे अधिक सामग्री पाषाण निर्मित थी, इसलिए आप इस काल को मानव इतिहास में, पाषाणयुग’ भी कहा जाता है। धरती पर सबसे पहले मानव अफ्रीका में लगभग चालीस लाख वर्ष पूर्व विद्यमान था, वहाँ उसके जीवाश्म प्राप्त हुए है।
 
∎ राजस्थान के चितौड़गढ़ में सर्वेक्षण कर डॉ. वी.एन. मिश्रा ने 1959 ई. में गंभीरी नदी के पेटे से जो चितौड़गढ़ के किले के दक्षिणी किनारे पर स्थित है, 242 पाषाण उपकरण खोजे थे। यह 242 उपकरण दो बार सर्वेक्षण कर एकत्रित किए गए।


* प्रथम संग्रह में 135 उपकरण तथा द्वितीय संग्रह में  107 उपकरण एकत्रित किए गए।
* प्रथम संग्रह के 135 उपकरणों में से तीन हस्त कुल्हाड़ी,  दो छीलनी (स्क्रेपर), एक कछुए की पीठ के समान  क्रोड और नौ फलक है।
* द्वितीय संग्रह में सात हस्त कुल्हाड़ी दो विदारणी  (क्लीवर) तथा चार क्रोड है।


∎ वी.एन. मिश्रा से पूर्व 1953-54 ई. में भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के प्रयासों से चितौड़गढ के गंभीरी और बेड़च नदी के पेटे से (चौपर हस्त कुल्हाड़ी तथा फलक) प्रस्तर उपकरण खोजे थे। राजस्थान के प्रागैतिहासिक कालीन संस्कृति को जानने के लिए यह महत्वपूर्ण खोज है।  

पाषाणकाल
मानव के अवशेषों में सबसे अधिक सामग्री जो प्राप्त होती है। वह पाषाण निर्मित उपकरण ही है, इसलिए इस मानव को हम सामान्यतः पाषाण युगीन मानव कहते है अर्थात् जिस काल में वह मानव इन उपकरणों का उपयोग करता रहा, उसे हम पाषाणकाल कहते है। पाषाण उपकरणों के आधार पर हम, इस युग को तीन भागों में विभक्त करते है –


1. पुरापाषाण युग (Palaeolithic Age)
2. मध्यपाषाण युग (Mesolithic Age)
3. नवपाषाण युग (Neolithic Age) .
 
पुरापाषाण युग (Palaeolithic Age)
∎  भारत में सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्रूसफुट ने 1863 ई. में मद्रास के पास स्थित पल्लवरम् नामक स्थान से पुराषाणकाल के उपकरण प्राप्त किये। जो कि एक हैन्ड-एक्स (हस्त-कुठार) थे।


∎ पश्चिमी भारत में पुरापाषाणकालिन संस्कृतियों की खोज का श्रेय  डॉ. एच.डी. सांकलिया और वी. एन. मिश्रा को जाता है।


∎ पश्चिमी भारत में माही, साबरमती, बेड़च, बाणगंगा,  गंभीरी, लूणी आदि नदियों के किनारे से एश्युलियन परम्परा के उपकरण खोजे गए।


∎ राजस्थान के डीडवाना क्षेत्र में डेकन कॉलेज, पूना द्वारा उत्खनन किया गया।


∎ पुरापाषाण युग वह काल खण्ड है, जिसमें मानव ने लगभग 20 वर्ष पूर्व सर्वप्रथम पाषाण उपकरण बनाये है, इसलिए ये सुगढ़ नहीं है, मोटे एवं बड़े प्रस्तरों से निर्मित है कोई-कोई तो साधारण सा प्रस्तर ही लगता है, ये इस पुरापाषाण युग में भी सबसे पहले निर्मित किये गये होंगे।


∎ इसी आधार पर अर्थात् उपकरण तकनीक के आधार पर हम पुरापाषाण युगीन कालखण्ड (जो लाखों वर्षों का है) को तीन खण्डों में विभक्त कर सकते है –
(अ) निम्न पुरापाषाण युग (Lower Palaeolithic Age)
(ब) मध्यपाषाण युग (Middle Palaeolithic Age)
(स) उच्च पुरापाषाण युग (Upper Palaeolithic Age)

(अ) निम्न पुरापाषाण युग (Lower Palaeolithic Age)

∎ भारत में निम्न पुरापाषाण संस्कृति की खोज का श्रेय सर्वप्रथम  आर. बुस-फुट को जाता है।


* 1863 ई. में मद्रास के पास पल्लवरम नामक स्थान से  अवशेष खोजे परंतु निम्न पुरापाषाणकाल की वैज्ञानिक तथा विधिवत् तरीके से खोज का श्रेय येल तथा केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एच.डी.ई.टेरा और टी.टी. पेटरसन  को जाता है।


* मानव के सबसे प्राचीन उपकरण जो सामान्य रूप से  उपलब्ध नदीतल के प्रस्तर पर निर्मित है, इन्हें ‘गोलाश्म उपकरण’, शंकू उपकरण’,’चापर उपकरण’ कहा जाता है।


*”हस्तकुठार’ ( हैण्डऐक्स) का निर्माण हुआ, जो प्रारंभ में विकृत धार युक्त हस्तकुठार बना। तत्पश्चात विदारणी’ (क्लीवर) का निर्माण हुआ।

*इस युग के पाषाण उपकरण पहलगाम (कश्मीर), शिवालिक क्षेत्र (पंजाब), बेलन घाटी (उत्तरप्रदेश), भीम बेटका (मध्यप्रदेश), ढिंगारिया, भानगढ़, नाथद्वारा, हमीरपुर मण्डपिया, बीगोद, बन्थली देवली, टोंक (सभी राजस्थान में), नेवासा (महाराष्ट्र), हंसगी (कर्नाटक) तथा तमिलनाडु में चैन्नई के निकटवर्ती क्षेत्र में प्राप्त हुए है। छः लाख वर्ष पूर्व से 60 हजार वर्ष पूर्व तक के मध्य माना गया है।
 
* कार्बन 14 पद्धति से प्रमाणित होता है कि राजस्थान  संपूर्ण भारत में निम्न पुरापाषाणकालीन मानव को सर्वाधिक प्राचीन केन्द्र है।
 
(ब) मध्यपाषाण युग (Middle Palaeolithic Age)


∎ इस युग में मानव ने चपटे-चपटे फलकों पर पतले  उपकरणों का निर्माण किया है।
∎ इनमें मध्यम आकार के हस्तकुठार, विदारणियाँ और विभिन्न प्रकार की खुरचणियाँ (स्क्रेपर) तथा छिद्रक (बोरर)  शामिल है।
∎ इस काल के उपकरण भीमबेटका, नेवासा, पुष्कर, नर्मदा किनारे समनापुर आदि स्थानों पर मिलें हैं।


(स) उच्च पुरापाषाण युग (Upper Palaeolithic Age)
∎ मध्यपुरापाषाण युगीन संस्कृति धीरे-धीरे उच्च पुरापाषाण युगीन संस्कृति के रूप में विकसित हुई। इस युग के उपकरण मुख्यतः ब्लेड़ पर निर्मित है।


* इस युग में पूर्वकालीन उपकरणों के साथ ‘ब्लेड’, ‘ब्यूरिन’ तथा ‘प्वॉइन्ट’ नामक उपकरणों का निर्माण किया गया।
* उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, आंध्रप्रदेश तथा न महाराष्ट्र के विभिन्न स्थलों से प्राप्त उपकरणों के आधार पर इस युग की अवधि 45 हजार वर्ष पूर्व से लेकर 10 हजार वर्ष पूर्व तक निर्धारित की गई है। रा
 
राजस्थान में पुरापाषाणकाल के प्रमुख केन्द्र
∎ हम्मीरगढ़, मानगढ़, नाथद्वारा, जहाजपुर, कुंवारिया, गिलुण्ड (भीलवाड़ा व राजसमंद जिले में बनास नदी पर)।


∎ देवली- टोंक, नवाघाट (चम्बल व बामनी नदी के तट  पर)।


∎ मण्डपिया, नगरी, हीरोजी का खेड़ा, बल्लूखेड़ा, भैंसरोड़गढ़  (बेड़च व गंभीरी नदी के तट पर)।


∎ सिंगारी व पाली, समदड़ी (बाड़मेर जिले में)।


∎ भानगढ़ (अलवर), ढिंगरिया और विराट नगर (जयपुर में बाणगंगा नदी पर)।


∎ इस युग के पाषाण से बने उपकरण हैण्ड एक्स’ की खोज राजस्थान में सर्वप्रथम सी. ए. हैकर ने जयपुर व इन्द्रगढ़  में की।


∎ अधिकांश विद्वानों की मान्यता है कि भारत में पूर्व  पाषाणकाल में अग्नि का आविष्कार नहीं हुआ था।
 
∎ पूर्वपाषाणकाल में मनुष्य पूर्णतः आखेट पर निर्भर था और उसका जीवन पूर्णतः प्राकृतिक था और वह उपभोक्ता मात्र था, उत्पादन (उत्पादक वर्ग) करना नहीं जानता था। यह कंदमूल, शिकार व मछली से भोजन प्राप्त करता था।


∎ पूर्वपाषाणकाल में मनुष्य पशुपालन, वास्तुकला व मृदभाण्ड कला से अपरिचित था। तथा इस समय के मनुष्य में किसी प्रकार की धार्मिक अथवा लोकोत्तर भावना का उदय नहीं हुआ था।
 
मध्यपाषाण युग  (Mesolithic Age)
∎ भारत में मध्यपाषाणकाल के उपकरणों की सर्वप्रथम खोज 1867 ई. में सी. एल. कार्लाइन ने विन्ध्याचल पर्वत क्षेत्र में की।


∎ मध्यपाषाणकाल में राजस्थान के बागौर (भीलवाड़ा) व तिलवाड़ा (बाड़मेर) तथा आदमगढ़ (मध्यप्रदेश) से 5000 ई.पू. के आसपास पशुपालन के प्राचीनतम अवशेष प्राप्त हुए है।

∎ इस युग में पाषाण उपकरणों का आकार-प्रकार क्रमशः छोटा होता गया और लगभग 1-5 सेमी. तक रह गया। इनको इस लघु आकार के कारण ही लघु पाषाण उपकरण’ या सूक्ष्म पाषाण उपकरण’ (Microlithic Tools) कहा जाता है।


∎ राजस्थान एवं गुजरात के पुरास्थलों से ज्ञात हुआ है कि इस युग का मानव-आखेटक, खाद्य संग्राहक अवस्था में रहता हुआ पशुपालन की ओर अग्रसर था।


∎ इस युग का मानव सौन्दर्य के प्रति जागरूक हो गया था, इसीलिए उसने गले में मणको का हार, कान में कुण्डल, अंगुलियों में अंगूठी आदि आभूषणों को धारण किया है।


∎ इस काल में परिवार प्रथा’ का जन्म हो गया था, इसलिए शवों को भी ये लोग झोंपडियों के भीतर ही दफनाने लगे थे  और उनके साथ खाद्य एवं पेय सामग्री को रखा जाना, उनके किसी विशिष्ट विश्वास (मृत्योपरांत जीवन सम्बन्धी) की  ओर भी संकेत करता है।

राजस्थान में मध्यपाषाण काल के प्रमुख केन्द्र
 
∎ राजस्थान में मध्यपाषाणकालीन प्रमुख केन्द्र नागौर है। ∎मध्यपाषाणकाल में मानव पशुपालन करने लग गया था  और राजस्थान में बागौर (भीलवाड़ा) से पशुपालन के प्राचीनतम अवशेष प्राप्त हुए है, जो कोठारी नदी पर स्थित है।


∎ मध्यपाषाणकालीन पशुपालन के अवशेष तिलवाड़ा (बाड़मेर), लूणी नदी से प्राप्त हुए है। इस काल का मानव गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़ा, मछली और घड़ियाल आदि से परिचित था।


∎ मध्यपाषाणकाल के जानवरों में कुत्ता प्रमुख था।


∎ मध्यपाषाणकाल के मानव पत्थरों पर चित्रों का अंकन करने लग गया था।


∎ राजस्थान में इस इस काल के अवशेष आलणियाँ, विलासगढ़, दर्रा (कोटा), विराट नगर (जयपुर), सोहनपुरा (सीकर), हरसोरा व सामधा (अलवर) है।


∎ मध्यपाषाणकाल में मानव ने शवों को दफनाना प्रारंभ कर दिया था।


मध्यपाषाणकालीन प्रागैतिहासिक शैलकला

∎ प्रारंभिक काल से मानव का पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित गुहाओं, चट्टानों में स्थित गव्हरों, नदी कगारों से तथा अन्य शिलाखण्डों द्वारा नैसर्गिक रूप में बन आश्रय स्थलों से सम्बन्ध रहा है, इन्हें ‘शैलाश्रय’ कहा जाता है।


∎ इन शैलाश्रयों का उच्च पुरापाषाण काल से आश्रय स्थल के रूप में उपयोग किये जाने के पुष्ट प्रमाण प्राप्त हुए है। इनकी छतों, भित्तियों पर तत्कालीन मानव जीवन के विविध पक्षों का उन्हीं के द्वारा किया गया चित्रांकन प्राप्त हुआ है, इन्हें ‘शैलचित्र’ कहते है। ये शैलचित्र उत्तर में कुमाऊ की पहाड़ियों से लेकर दक्षिण में केरल तक तथा पश्चिमोत्तर में पाकिस्तान से लेकर पूर्व में उड़ीसा तक पाये गये है।


∎ शैलचित्रों की दृष्टि से भीमबेटका(मध्यप्रदेश) विश्व विख्यात है। मध्यप्रदेश में भोपाल होशंगाबाद, विदिशा, सागर तथा उत्तरप्रदेश में मिर्जापुर, इस दृष्टि से उल्लेखनीय है।


∎ राजस्थान में चम्बल नदी घाटी क्षेत्र (अलनियाँ, विलासगढ़, दर्रा आदि), विराटनगर (जयपुर), सोहनपुरा (सीकर), हरसौरा एवं सामधा (अलवर) आदि पुरास्थलों के शैलाश्रयों में चित्रांकन पाया गया है।


* आदमगढ़(मध्यप्रदेश) के प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज  वी. एस. वाकणकर ने की।
* भीमबेटका (मध्यप्रदेश) के प्रागैतिहासिक चित्रों की  खोज आर. वी. जोशी ने की।


∎ डॉ. वी. एच. सोनवाने को चन्द्रावती (गुजरात) से मध्य पाषाण युगीन उपकरण (फ्लूटेड कोर) पर रेखांकन प्राप्त हुआ है। इससे इस चित्रण परम्परा का प्रारंभ मध्य पाषाण  युग से तो स्वतः सिद्ध है।


∎ डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर इसका प्रारंभ इससे भी पूर्व उच्च पुरापषाण काल से मानते है। ये चित्र अधिकतर लाल एवं गेरू रंग के है।


∎ सबसे अधिक चित्रांकन पशुओं का अकेले अथवा छोटे-बड़े समूहों में किया गया है। आदमगढ़ के शैलाश्रयों में गेंडे के शिकार के दृश्य का चित्रांकन है।


∎ आखेट दृश्यों में भालानुमा उपकरण हाथों में दर्शाये गये है. जिनमें अनेक लघुपाषाण उपकरण लगे है।

नवपाषाण युग (Neolithic Age)
∎ भारत में नवपाषाण काल की प्रथम खोज लेन्मेसुरियरने 1860 ई. में टोंस नदी घाटी (उत्तरप्रदेश) में की। पूर्वपाषाण युग  का मानव मुख्यत: आखेटक था।


∎ इसी क्रम में उसने मध्यपाषाणकाल में पशुपालन भी प्रारंभ कर दिया था और नवपाषाण युग में पशुपालन के साथ-साथ कृषि कर्म की ओर अग्रसर होने लगा।


∎ नवपाषाणकाल में मानव ने ऐसे पाषाण उपकरणों का निर्माण किया जो उसे पशुपालन एवं कृषि कर्म में उपयोगी सिद्ध हो सके। इन उपकरणों में मुख्य रूप से कुल्हाड़ियाँ है।
* इनके अतिरिक्त रूखानी, वसूला, छिद्रित वृत्त, हथौड़ा है आदि प्रमुख है।
* ये उपकरण बसाल्ट या ट्रप जैसे कठोर प्रस्तर पर बने है, जिन्हें घिस कर चिकना पॉलिशयुक्त बनाया गया।
 
∎ भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में सर्वप्रथम नवपाषाण युग की प्राचीनतम बस्तियाँ विकसित हुई जो 8000 ई.पू. में मेहरगढ़ के आसपास दिखाई देती है। ये लोग मिट्टी के घरों में रहते थे तथा जौ, गेहूँ की खेती करते थे एवं भेड़-बकरियाँ तथा अन्य पशु पालते थे।


∎ 7000 ई.पू. में पश्चिम एशिया में गेहूँ एवं जौ की खेती करना प्रारंभ हो गया था। उत्तरप्रदेश में स्थित बेलनघाटी की कोल्डिहवा से 7000 ई.पू. में चावल उगाये जाने के प्रमाण प्राप्त हुए है।


∎ हमारे देश के संदर्भ में नवपाषाण कालीन कृषि पर आधारित क्षेत्रों को मोटे तौर पर निम्न भागों में बांटा गया है –
1. सिंधु प्रणाली तथा उसके पश्चिमी भाग में नवपाषाण युगीन संस्कृतियाँ।
2. गंगाघाटी क्षेत्र की नवपाषाण युगीन संस्कृतियाँ।
3. दक्षिणी दक्कन में नवपाषाण युगीन संस्कृतियाँ।


∎ ये सभी नवपाषाण युगीन संस्कृतियाँ कृषि एवं पशुपालन पर आधारित थी। इसके प्रारंभिक साक्ष्य पश्चिमोत्तर भाग में क्वेटा तथा झॉब घाटियों में मिले है। यहाँ मेहरगढ़ से ज्ञात हुआ है  कि यहाँ के लोग लगभग 7000 ई.पू. में बसने लगे थे। इस हेतु इन्होनें ईंटों एवं गारे से वर्गाकार या आयताकार घरों  का निर्माण किया था।
 
 
राजस्थान में उत्तरपाषाणकाल के प्रमुख केन्द्र
 
∎ राजस्थान में मानव मध्यपाषाणकाल से सीधा उत्तर पाषाणकाल में प्रवेश कर गया था। राजस्थान में नवपाषाण के अवशेष प्राप्त नहीं होते है।


∎ इस काल का मानव पशुपालन के साथ-साथ सर्वप्रथम कृषि कार्य करना शुरू कर चुका था।


∎ राजस्थान में उत्तर पाषाणकाल के अवशेष बनास नदी के तट पर हम्मीरगढ़, जहाजपुर (भीलवाड़ा), लूणी नदी के तट पर समदड़ी (बाड़मेर) तथा भरणी (टोंक) में है।


∎ इस काल में मानव पहिये से परिचित हो गया था और कपास  की खेती भी करने लगा था।


∎ इस युग में सामाजिक रूप से व्यवसाय के आधार पर जाति व्यवस्था का सूत्रपात हो गया था।


∎ उत्तर पाषाणकाल में मृदभाण्ड कला का उदय हुआ तथा कुम्हार का चाक इसी काल का द्योतक है। इस काल के मृदभाण्डों को चमकदार मृदभाण्ड, धूसर मृदभाण्ड तथा मंद वर्ण मृदभाण्ड भी कहा जाता है।


∎ उत्तर पाषाणकाल में मनुष्य वस्त्र निर्माण, गृह निर्माण, पॉलिशिंग प्रणाली का कार्य प्रारंभ कर दिया था।


∎ उत्तर पाषाणकाल में अग्नि का प्रयोग होने लगा था तथा अग्नि की सहायता से भोजन पकाया जाने लगा।


∎ इस काल में मानव खेती करना व कृषि कार्य के माध्यम से उत्पादन करना सीखा।


∎ जानवरों को पालतू बनाने की प्रकिया मध्य पाषाणकाल के अंतिम चरण में शुरू हो गई थी तथा पशुपालन के बाद कृषि कार्य की शुरूआत नवपाषाण में हुई।


∎ नवपाषाण के मानव का जीवन, स्थिर ग्राम्य जीवन था।


∎ नवपाषाण के लोग पूर्णतः पत्थर से बने औजारों पर निर्भर थे।

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