राजस्थान के प्रमुख साके, जौहर एवं केसरिया

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राजस्थान के प्रमुख साके, जौहर एवं केसरिया : भारत पर तुर्कों के आक्रमण आठवीं सदी में ही प्रारंभ हो गए थे। इन आक्रमणों का प्रारंभ 713 ई. में मोहम्मद बिन कासिम के साथ हुआ। मोहम्मद बिन कासिम ने 713 ई. में पंजाब के राजा दाहिर को पराजित किया और उसकी पत्नी रानीवती ने जौहर कर लिया यह भारत का प्रथम जौहर कहलाता है।

  • केसरिया- राजपूत योद्धा पराजय की स्थिति में शत्रु पर केसरिया साफा-वस्त्र धारण कर टूट पड़ते थे और अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो जाते थे। वह केसरिया करना कहलाता था।
  • अर्द्ध साका- यदि किसी युद्ध में केसरिया तो हुआ लेकिन ‘जौहर’ नहीं हुआ तो इसे अर्द्ध साका कहते है।
  • जौहर प्रथा- जब शत्रुओं के आक्रमण के समय राजपूत योद्धाओं के युद्ध से जीवित लौटने की कोई आशा नहीं रहती थी और न उनके दुर्ग का दुश्मन के हाथ से बचना संभव होता था तो उस दशा में किले की स्त्रियों द्वारा सामूहिक रूप से अपने धर्म व आत्म सम्मान की रक्षा ‘अग्निदाह’ करने की प्रथा जौहर कहलाती थी
  • साका- जब दुश्मन द्वारा किसी राजपूत दुर्ग पर आक्रमण किया जाता था तो राजपूत योद्धा केसरिया धारण करते थे तथा राजपूत वीरांगना जौहर व्रत करती थी वह ‘साका’ कहलाता था।
  • इन दोनों क्रियाओं में यदि कोई एक क्रिया नहीं होती थी तो ‘अर्द्धसाका‘ कहलाता था।
  • जैसलमेर में ढाई, सिवाणा में दो, जालौर में एक, चितौड़ में तीन, गागरोण में दो तथा रणथम्भौर व सवाई माधोपुर में एक साका हुआ।
  • राजपूताना में हुए साकों में सर्वाधिक दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी के विरूद्ध संघर्ष के दौरान हुए।

रणथम्भौर के प्रमुख साके : राजस्थान के प्रमुख साके

प्रथम साका – 1301 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान राणा हम्मीर वीरगति को प्राप्त हुए तथा इनकी रानी रंगदेवी ने जौहर किया। यह राजस्थान का प्रथम साका माना  जाता है।

चित्तौगढ़  के प्रमुख साके

  • प्रथम साका – 1303 ई. में रत्नसिंह की पत्नी पद्मिनी के नेतृत्व में राज्य का दूसरा व चितौड़ का प्रथम साका।
  • अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान पद्मिनी के नेतृत्व में स्त्रियों ने जौहर किया व रत्नसिंह के नेतृत्व में राजपूतों (गोरा व बादल सहित ) ने ‘केसरिया’ किया।
  • अलाउद्दीन का दरबारी कवि अमीर खुसरो चितौड़ अभियान में सुल्तान के साथ था।
  • अमीर खुसरो ने अपनी कृति तारीख-ए-अलाई/ खजाईनुल-फुतुह में इस आक्रमण का आँखों देखा विवरण प्रस्तुत किया है।
  • द्वितीय साका – मेवाड़ में रत्नसिंह द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् राणा सांगा का अल्पायु पुत्र विक्रमादित्य मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा किंतु वास्तविक शासन उसकी माता कर्णवती कर रही थी। उसी समय 1534-35 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया, उससे संघर्ष करते हुए सेनापति बाघसिंह केसरिया करके लड़ा किंतु मारा गया और कर्णवती ने जवाहर बाई (विक्रमादित्य की पत्नी) व अन्य 13,000 विरांगनाओं के साथ जौहर कर लिया।
  • तृतीय साका – 1567-68 ई. में उदयसिंह के शासनकाल में जब मुगल बादशाह अकबर ने चितौड़ पर आक्रमण किया, तो किले की रक्षा करते हुए जयमल राठौड़ व फतेहसिंह सिसोदिया वीरगति को प्राप्त हुए और फतेहसिंह की पत्नी फूलकंवर सहित किले की अनेक वीरांगनाओं ने जौहर किया।

यह साका जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है।

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सिवाणा के प्रमुख साके : राजस्थान के प्रमुख साके

प्रथम साका- जिस समय सिवाणा पर शीतलदेव का शासन था उस समय सिवाणा पर अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण 1308 ई. में हुआ। जब वीर शीतलदेव और सोमेश्वर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का प्रतिरोध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और शीतलदेव की पत्नी मैणादे ने जौहर कर लिया।

इस विजय के पश्चात् अलाउद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रख दिया।

तारीख-ए-फरिश्ता के लेखक फरिश्ता के अनुसार यह साका 1310 ई. में हुआ।

द्वितीय साका- कल्लाजी राठौड़ के शासनकाल में अकबर के आक्रमण के समय हुआ जब मोटा राजा उदयसिंह ने अकबर की सहायता से वीर कल्ला राठौड़ पर आक्रमण कर उसे पराजित किया। यहाँ के स्वाभिमानी शासक वीर कल्ला राठौड़ ने भीषण प्रतिरोध (युद्ध) करते हुए वीरगति प्राप्त की और महिलाओं ने जौहर व्रत किया।

वीर कल्ला राठौड़ की वीरता व इनको प्राप्त सिद्धियों के कारण मेवाड़ में इन्हें लोकदेवता का दर्जा प्राप्त है।

बाँसवाड़ा में वीर कल्ला राठौड़ के लगभग 200 मंदिर है।

वीर कल्ला राठौड़ की पीठ रनेला (चितौड़गढ) में है।

जालौर के प्रमुख साके

प्रथम साका-1311-12 ई. में जब अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया तब वहाँ के चौहानवंशी शासक कान्हड़देव चौहान और उसके पुत्र वीरमदेव ने वीरगति प्राप्त की और कान्हड़दे की पत्नी जैतलदे ने वीरांगनाओं के साथ जौहर किया। * कवि पद्मनाभ द्वारा रचित ‘कान्हड़देव प्रबंध’ से इस साके का विस्तृत वर्णन मिलता है।

जैसलमेर के प्रमुख साके

 प्रथम साका1313 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय महारावल मूलराज के समय हुआ था। अलाउद्दीन खिलजी ने भाटी शासक रावल मूलराज को पराजित किया।

द्वितीय साका फिरोजशाह तुगलक के आक्रमण के समय विक्रम संवत् 1390 में राव दूदा के समय हुआ। फिरोजशाह तुगलक के आक्रमण करने पर रावल दूदा व त्रिलोकसिंह के नेतृत्व में भाटी यौद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की व वीरांगनाओं ने जौहर किया।

तृतीय अर्द्ध साका – यह साका महारावल लूणकरण के शासनकाल में 1550 ई. में हुआ था। इस अर्द्ध साके में जौहर के लिए पर्याप्त समय न होने पर राजपूत वीरों ने अपनी मान मर्यादा को बचाने हेतु अपनी माँ, बहिनों कुलवधुओं तथा रानियों व महारानियों को अपने हाथों अपनी ही तलवार से मौत के घाट उतार दिया।

इसे अर्द्ध साका इसलिए माना है क्योंकि इसमें वीरों ने केसरिया बाना तो पहना था लेकिन महिलाओं ने जौहर नहीं किया।

इस अर्द्ध साके के समय आक्रमणकारी अमीर अली था।

राजस्थान के प्रमुख साके

भटनेर के प्रमुख साके

प्रथम साका – 1398 ई. में तैमूर लंग ने भटनेर पर आक्रमण किया। इससे दुर्ग का शासक दूलचंद भाटी युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ।

यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जिसमें हिंदू महिलाओं के साथ मुस्लिम महिलाओं द्वारा भी जौहर करने के प्रमाण मिलते है।

भारत में सबसे बड़ा कत्लेआम इसी दुर्ग में तैमूर लंग के आक्रमण के समय हुआ था।

गागरोण के प्रमुख साके

प्रथम साका – 1425 ई. में गागरोण में खींची वंश का शासक अचलदास खींची था। उस समय माण्डु (मालवा) के सुल्तान हौशंगशाह ने गागरोण पर आक्रमण किया। इसमें अचलदास मारा गया और उसकी पत्नी उमादे ने जौहर किया।

द्वितीय साका -1444 ई. में गागरोण के दूसरे साके के समय गागरोण का शासक पाल्हणजी था।वह महमूद खिलजी प्रथम से संघर्ष करता हुआ मारा गया और महिलाओं ने जौहर कर लिया।

राजस्थान में कितने साके हुए हैं?

राजस्थान में युद्ध के समय साके, जोहर और केसरिया अक्सर  होता था और इनका जो शुरुआत 713 ईसवी के समय मोहम्मद बिन कासिम के साथ पंजाब के राजा दाहिर को पराजित कर उसकी पत्नी रानी ने जौहर किया तब

से इसका शुरुआत  मानी जाती है प्रथम साका अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय युवा द्वितीय साका फिरोजशाह तुगलक के आक्रमण के समय युवा और राजस्थान का एकमात्र जैसलमेर दुर्ग जहां पर ढाई साके हुए तीसरे साके के समय वीरों ने केसरिया तो कर लिया किंतु जोहर नहीं हुआ इसलिए यह ढाई साके के नाम से प्रसिद्ध है

मेवाड़ के साका कब हुआ?

मेवाड़ का शाखा सन 1301 इस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ यह शाखा हमीर देव चौहान के साथ विश्वासघात के परिणाम स्वरूप उनको वीरगति प्राप्त हुई एवं उनकी पत्नी रंग देवी ने जौहर किया जब केसरिया और जौहर दोनों होते हैं तो साका कहलाता है यह राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रथम साका था

चित्तौड़गढ़ में जौहर कितनी बार हुआ?

संपूर्ण भारत के इतिहास में केवल चित्तौड़गढ़ दुर्ग ही एक ऐसी जगह है जहां नारी स्वाभिमान की रक्षा के लिए एक नहीं तीन बार जौहर हुआ है और इन जौहर की स्मृति में यहां एक भव्य मंदिर भी बनाया गया है चित्तौड़गढ़ किले की तलहटी में जौहर भवन स्थित है इसका नाम जौहर ज्योति मंदिर है

जैसलमेर में कितने साके हुए?

जैसलमेर में कुल ढाई साके हुए हैं जैसलमेर का पहला शाखा अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय व दूसरा साका फिरोजशाह तुगलक के शासन के शुरुआती वर्षों में हुआ और तीसरा साका आधा माना जाता है क्योंकि 1550 ईस्वी में राव लूणकरण के समय शासक आमिर अली जो कि कंधार का शासक था उसके आक्रमण के समय वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जोहर नहीं हो सका इसलिए इसे आधा साका माना जाता है

भारत का प्रथम जौहर कब हुआ?

भारत का प्रथम जोहर के बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि भारत का प्रथम जौहर एलेग्जेंडर के समय हुआ था और भारत के इस प्रथम जोहर की बात करें तो यह लगभग 336 ईसा पूर्व और 323 ईसा पूर्व के बीच का समय माना जाता है

जौहर दिवस कब मनाया जाता है?

जौहर दिवस 26 अगस्त को मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन चित्तौड़ की रानी पद्मिनी ने 26 अगस्त, 1303 को 16000  क्षत्राणियों के साथ जोहर किया उस समय अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया

जय जौहर का मतलब क्या है?

जय जौहर का शाब्दिक अर्थ होता है “संपूर्ण प्रकृति की जय”  जोहर का मतलब (Meaning of Johar) “सबका कल्याण करने वाली प्रकृति” अर्थात  “प्रकृति के प्रति संपूर्णता का भाव” ही जोहर कहलाता है

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