REET Teaching Methods / सामाजिक विज्ञान /अध्ययन कक्ष Room of Social Science/Studies / कक्षा-कक्ष की प्रक्रियाएँ

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REET Teaching Methods / सामाजिक विज्ञान /अध्ययन कक्ष Room of Social Science/Studies / कक्षा-कक्ष की प्रक्रियाएँ : रीट शिक्षण विधियाँ REET shikshan vidhiyan की इस पोस्ट में कक्षा – कक्षा के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे जो राजस्थान अध्यपक पत्रता परीक्षा के लिए बहुत ही महत्ववपूर्ण एवं उपयोगी है अगर आपको इन सभी नोट्स की पीडीऍफ़ फाइल डाउनलोड करनी है तो आप ePariksha App डाउनलोड करे सकते हो जिसका लिंक इस पोस्ट के अन्त में दिया गया है
सामाजिक विज्ञान /अध्ययन कक्ष Room of Social Science/Studies

◆ किसी प्रकार के भवन का निर्माण करने से पूर्व भवन का मालिक यह सोचता है कि उसे भवन किस प्रयोजन हेतु बनवाना है।

◆ वह स्वयं रहेगा, उद्योग लगायेगा, किराये पर उठायेगा या शिक्षण कार्य करेगा? और उस प्रयोजन विशेष को ध्यान में रखकर उसे इस प्रकार से बनायेगा कि उससे वह अधिकाधिक लाभ उठा सके।

◆ इस प्रकार से स्कूल या कॉलेज का भवन बनाते समय भी विभिन्न विषयों एवं अन्य क्रियाकलापों को ध्यान में रखा जाता है।

◆ कोई विषय प्रायोगिक क्रियाओं से सम्बन्धि है तो उसके निर्माण के समय अन्य कई बातों पर भी विचार किया जाता है अर्थात् जिस विषय के लिए जैसे कमरे की आवश्यकता होती है उसी के अनुरूप कमरा बनवाया जाता हैं।

◆ सामाजिक अध्ययन शिक्षण के अन्तर्गत भूगोल के लिए अलग कक्ष होना चाहिए या नहीं? इस प्रश्न पर बहुत पहले से विचार आरम्भ हो गया था। और भूगोलवेत्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भूगोल के सफल शिक्षण के लिए अलग कक्ष की महती आवश्यकता हैं।

◆ सन् 1950 में माण्ट्रियल (कनाडा) में इस विषय पर एक ‘अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठी’ (International Seminar) का आयोजन किया गया, जिसमें सभी भूगोलवेत्ता इस बात पर सहमत थे कि सामाजिक अध्ययन शिक्षण के अन्तर्गत भूगोल का शिक्षण विज्ञान के विषयों की भाँति अलग कमरे में होना चाहिए। (CTET)

◆ इसी मत का समर्थन यूनेस्को (UNESCO) नामक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ने किया है। (UPTET)

◆ अत: यह कहा जा सकता है कि सामाजिक अध्ययन-शिक्षण सामाजिक अध्ययन कक्ष में ही होना चाहिए।
 
सामाजिक विज्ञान/अध्ययन-कक्ष की आवश्यकता (Need of a Social Science/Studies-Room)
◆ वर्तमान समय में सामाजिक अध्ययन की विषय-सामग्री एवं उससे सम्बन्धित नयी खोजों एवं यन्त्रों के आविष्कार को देखते हुए सामाजिक अध्ययन-कक्ष की आवश्यकता प्रतीत होती है।

सामाजिक अध्ययन में अलग कक्ष की क्यों आवश्यकता अनुभव हुई?
1. कुछ यन्त्र इस प्रकार के होते हैं जिनका उपयोग प्रत्येक स्थान पर नहीं किया जा सकता तथा कुछ सहायक सामग्री (Teaching Aids) भी ऐसी होती है कि . उसके प्रदर्शन के लिए प्रकाश या अन्धकार की व्यवस्था करनी पड़ती है।

2. सामाजिक अध्ययन शिक्षण के अन्तर्गत भूगोल के यन्त्र, मॉडल आदि पर्याप्त महंगे होते हैं। अतः बार-बार इधर-उधर लाने ले जाने मे टूटने या खराब होने का भय बना रहता है।

3. कई बार अध्यापक को एक ही कक्षा में लगातार कालाँश लेने पड़ते हैं।

◆ यदि वह बीच मे यन्त्र या अन्य सामग्री लेने के लिए कक्षा छोड़कर आता है तो कक्षा-अनुशासन एवं सीखने की प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है।

◆ यदि सभी यन्त्र एवं अन्य सामग्री एक साथ ही ले जाकर कक्षा में रख लेता है तो कक्षा में जगह अधिक चाहिए। संग्रहालय की तरह नजर आती है जोकि नियत विषय-वस्तु की जानकारी देने में मार्ग बाधक सिद्ध होती है, क्योंकि शिक्षार्थी शिक्षण कार्य में रूचि कम लेना आरम्भ कर देते हैं और यन्त्रों आदि की तरफ ध्यान अधिक आकर्षित करते हैं।

4. सामाजिक अध्ययन के शिक्षार्थी को मिट्टी, खनिज, चट्टान आदि के नमूने एकत्र करने होते हैं तथा मॉडल्स् का निर्माण करना होता है, अत: उन्हे रखने के लिए अलग से सामाजिक अध्ययन कक्ष की आवश्यकता होती हैं।

5. श्यामपट्ट पर बनाये गये मानचित्र, प्रक्षेप, मापनी, विभिन्न प्रकार की आकृतियों के संकेत आदि कई बार, कई दिनों तक शिक्षण में काम आते हैं। एसी स्थिति में अलग कक्ष होने पर अध्यापक का इन वस्तुओं को पुनः बनाने का श्रम एवं समय बच जाता है, जिसका उपयोग आगे के शिक्षण कार्य में किया जा सकता हैं।

6. सामाजिक अध्ययन शिक्षण के अनुकूल वातावरण का निर्माण केवल अलग कक्ष में ही होना सम्भव, जिसका सीखने की प्रक्रिया (Learning Process) पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता हैं।

7. अलग सामाजिक अध्ययन कक्ष होने पर शिक्षार्थियों को भी उनकी आवश्यकता की सभी प्रकार की सामग्री एक ही स्थान पर सुविधापूर्वक उपलब्ध हो जाती है, जोकि कक्ष के अभाव में कठिन हैं।

◆ भूगोल के यन्त्रों एवं उपकरणों को रखने के लिए भी अलग जगह की आवश्यकता होती है। जोकि सामाजिक अध्ययन कक्ष में ही सम्भव हैं। सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत भूगोल में भी विज्ञान के विषयों की तरह प्रायोगिक कार्य करना होता है जिसके लिए विभिन्न प्रकार के यन्त्रों आदि की आवश्यकता होती है।
उन यन्त्रों का प्रयोग कर व्यावहारिक कार्य करने के लिए एक निश्चित स्थान ही अधिक युक्तिसंगत जान पड़ता है।

10. एक दिन में स्तर विशेष के लिए निर्धारित सभी विषयों का शिक्षण देने की व्यवस्था होती है, अतः सामाजिक अध्ययन का सामान्यतः दिन में एक ही कालांश (Period) पड़ता है तथा इससे पूर्व या बाद में दूसरे विषयों के कालाँश होते हैं तथा साथ ही अध्यापक को भी अलग-अलग कक्षाओं में जाना पड़ता है।

◆ अतः उसके लिए विभिन्न प्रकार के यन्त्रों, नमूनों, मॉडलों आदि को एक कक्षा से दूसरी कक्षा में ले जाना बड़ा कठिन कार्य हैं।

◆ यदि किसी प्रकार से ले जाने की भी व्यवस्था की जाए तो इसे लाने ले जाने में कालाँश का अधिकांश समय व्यर्थ ही नष्ट होने की आशंका बनी रहती है, जिससे नियत पाठ्यक्रम को पूर्ण करने में कठिनाई आती है।
सामाजिक विज्ञान/अध्ययन के अन्तर्गत भूगोल कक्ष की योजना
◆ सामाजिक अध्ययन-कक्ष की योजना बनाते समय तीन बातों पर मुख्य रूप से विचार किया जाना चाहिए

(1) सामाजिक अध्ययन-कक्ष की स्थिति

(2) सामाजिक अध्ययन-कक्ष की बनावट

(3) सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत भूगोल के उपकरणों को रखने का स्थान
 
1. सामाजिक अध्ययन-कक्ष की स्थिति
◆ यदि शाला में सामाजिक अध्ययन के लिए कक्ष बनाना हो तो कुछ बातों पर विचार कर लेना श्रेयस्कर होगा।

जिसका विवरण इस प्रकार से है  
◆ सामाजिक अध्ययन कक्ष ऊँचाई पर होना चाहिए, ताकि कक्ष के अन्दर से ही गृह-प्रदेश (Home Region) की भली-भाँति अवलोकन किया जा सके तथा तापमान, वर्षा, वायु की आर्द्रता, वायु की शुष्कता एवं अन्य आकस्मिक परिवर्तनों का आसानी से निरीक्षण किया जा सके।

◆ सामाजिक अध्ययन-कक्ष शाला भवन के एक तरफ होना चाहिए, बीच में नहीं। जिसमें निरीक्षण खिड़कियाँ (Observation-Windows) का निर्माण कराया जा सके।

◆ कक्ष के अन्दर सूर्य का प्रकाश आसानी से सीधा जा सके अर्थात् खिड़कियों से प्रकाश आने में कठिनाई उत्पन्न न हो।

◆ भूगोल कक्ष के पास यदि कोई मैदान हो तो उसका उपयोग कई प्रकार से आउट डोर (Out-Door) प्रयोगों के लिए किया जा सकता है तथा उसमें संभव हो तो एक छोटी सी वेधशाला (Observatory) का निर्माण भी किया जा सकता है।
 
2. सामाजिक अध्ययन-कक्ष की बनावट ( Formation of a SocialStudy room)- सामाजिक अध्ययन कक्ष की बनावट पर विचार करने के लिए हमें कक्षा में बैठने वाले शिक्षार्थियों की संख्या एवं सुविधा पर विचार करना आवश्यक है तथा इसके साथ ही अध्यापक के बैठने, पढ़ाने एवं उपकरणों को व्यवस्थित रूप में उचित स्थान पर रखने की बात मस्तिष्क में आती है।

◆ इनमें उपकरणों की व्यवस्था सम्बन्धी समस्या अधिक नहीं है परन्तु छात्रों के बैठने के लिए कितने स्थान आवश्यकता है? इस प्रश्न को लेकर भूगोलवेत्ताओं में मतभेद है।

◆ सामाजिक अध्ययन कक्ष के आकार-विस्तार एवं अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए सभी प्रकार की विचारधाराओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है
(i) आदर्शवादी विचारधारा

(ii) व्यवहारवादी विचारधारा

(iii) भारतीय विचारधारा
 
(i) आदर्शवादी विचारधारा-
इस विचारधारा के पोषक एक आदर्श स्थिति की बात करते है, जिसमें शिक्षार्थी आसानी से कक्ष में नियत अपनी सीट पर बैठकर आसानी से अपना अध्ययन कार्य कर सकें तथा साथ ही वह प्रत्येक क्षेत्र के चारों ओर आसानी से आना-जाना भी कर सके।

◆ इस प्रकार से प्रत्येक शिक्षार्थी के लिए 6×6′ क्षेत्र की आवश्यकता होती है और यदि एक कक्ष में शिक्षार्थियों की संख्या तीस भी मानकर चलें तो कक्ष का क्षेत्रफल 36′ x 30′ = 1080 वर्गफुट होगा। यही आदर्श सामाजिक अध्ययन कक्ष माना गया है। (CTET)

◆ इसके साथ ही एक मृत्तिका से मॉडल बनाने का कमरा (Clay-room) भी संलग्न होना चाहिए जो कि क्षेत्रफल में इतना बड़ा अवश्य होना चाहिए किस उसमें छात्र एक साथ मॉडल बना सकें। इस कमरे में पानी के निकास की व्यवस्था के साथ-साथ निमांकित सामान के रखने की भी व्यवस्था होनी चाहिए-.
(1) पानी का एक बड़ा हौज

(2) लकड़ी के छोटे-छोटे तख्ने जो नमूने बनाने के काम आ सके ।

(3) चिकनी मिट्टी रखने का सन्दूक

(4) बनाये हुए मॉडल्स् को रखने का स्थान

(5) मॉडल्स बनाने के लिए फर्स किया हुआ खुला भाग –

(6) बाल्टी या अन्य सामान, जो कि मॉडल्स् बनाने के काम आता है, रखने का स्टोर

◆ उपरोक्त प्रकार के कमरे के साथ ही एक अन्धेरा कक्ष (Dark-room) भी होना चाहिए जिसमें विशेष प्रकार से नयी तकनीकी द्वारा समाजिक अध्ययन के अन्तर्गत भूगोल का शिक्षण कार्य सम्पन्न कराया जा सके।

◆ इसके अलावा एक भंडार-कक्ष (Store-room) भी होना चाहिए। जिसमें ऐसी सामग्री को रखा जा सके जिसकी प्रतिदिन आवश्यकता नहीं होती। इसके साथ यही एक ऐसा कक्ष भी होना चाहिए जिसे सामाजिक अध्ययन-पुस्तकालय (Geography- Liberary) के रूप में प्रयोग में लाया जा सके।

◆ जहाँ पर सामाजिक विज्ञान सम्बंधी पुस्तकें या अन्य प्रकार का साहित्य उपलब्ध हो सके।आदर्शवादी विचारधारा के अनुरूप सामाजिक अध्ययन-कक्ष की रूपरेखा इस प्रकार दर्शायी जा सकती है

◆ उपरोक्त विचारधारा देखने एवं सुनने में बहुत ही अच्छी लगती है परन्तु इसके अनुसार सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत भूगोल-कक्ष का निर्माण करने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होगी तथा साथ ही साथ अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में भूमि भी चाहिए। अत: वास्तविक संसार में इस प्रकार के भूगोल कक्षों का निर्माण करना असम्भव नहीं तो मुश्किल अवश्य हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि इस प्रकार के भूगोल-कक्ष पृथ्वी पर नहीं बल्कि कागज पर अच्छी प्रकार से बनाये जा सकते हैं। फिर भी इस पर गहनता से विचार करना अवश्य ही श्रेयस्कर सिद्ध हो सकता है।
 
(ii) व्यवहारवादी विचारधारा-
◆ इस विचारधार के पोषक मानते हैं कि दो शिक्षार्थियों को एक साथ बैठाया जाय तथा उनको आसानी से पढ़ने के लिए 4.5′ x 2.5′ स्थान की आवश्यकता होगी एवं उन्हें आने-जाने का भी उचित स्थान छोड़ना चाहिए। इस प्रकार से दो
शिक्षार्थियों के लिए सामान्यतया 6′ x 4′ = 24 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता में चालीस शिक्षार्थियों के बैठने की व्यवस्था की जा सकती है तथा शिक्षार्थियों के सामने अध्यापक के लिए क्षेत्र नियत होना चाहिए जहाँ पर वह आसानी से शिक्षण कार्य सम्पन्न करा सके एवं उसके साथ ही आवश्यकतानुसार भंडार-कक्ष भी बनाया जा सकता है।

◆ व्यवहारवादी इस बात से भी सहमत हैं कि 40 शिक्षार्थियों के लिए भी योजनानुसार सामाजिक अध्ययन कक्ष की व्यवस्था की जा सकती हैं।
 
(iii) भारतीय विचारधारा
◆ भारत एक निर्धन एवं विकासोन्मुख राष्ट्र हैं। अत: सामाजिक अध्ययन-कक्ष पर इतना धन खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं।

◆ यही कारण है कि माध्यमिक स्तर तक यहाँ पर सामाजिक विषय के अन्तर्गत भूगोल-कक्ष की व्यवस्था नहीं है। और अधिकांश उच्च माध्यमिक स्कूलों में भी यही स्थिति है, जबकि इस स्तर पर प्रायोगिक कार्य भी आरम्भ हो जाता है, अतः भारत में वर्तमान में विश्वविद्यालय स्तर पर ही सामाजिक अध्ययन की स्थापना हो सकी है।

◆ भूगोल में कक्ष की महत्ता एवं आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए स्कूलों में भूगोल-कक्ष का निर्माण करना उचित रहेगा।

 भूगोल कक्ष की सामग्री एवं उपकरण
◆ भूगोल-कक्ष में किस प्रकार की सामग्री एवं उपकरण रखे जायें? यदि उस प्रश्न का उत्तर देना हो तो सीधे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जिस प्रकार की सामग्री एवं उपकरणों की आवश्यकता हो उन्हें ही सामाजिक अध्ययन कक्ष में स्थान दिया जाए।

◆ सामाजिक अध्ययन शिक्षण में भूगोल विषय के लिए आवश्यक सामग्री एवं उपकरणों पर प्रकाश डाला गया है, जिनका विवरण निम्नांकित हैं
(1) पाठ्य-पुस्तकें एवं एटलस

(2) श्यामपट्ट

(3) दीवार पर टाँगने वाले बड़े मानचित्र

(4) निर्देश-ग्रंथ

(5) विभिन्न यन्त्र

(6) शिक्षक की प्रदर्शन मेज (Teacher’s Demonstration Table) तीन फुट ऊँची तथा ऊपर से आकार 3’x 3′ होना चाहिए यदि 3’x 4′ हो तो और भी उत्तम रहेगा, ताकि वह उपकरणों एवं मॉडल्स को ठीक प्रकार से दिखा सकें।

(7) पुस्तकें रखने की अलमारी (Library Cup-Board)

(8) फाइलिंग केबीनेट (Filling Cabint)

(9) भित्ति मानचित्र रखने का कप बोर्ड (Wall- Map Cup-Board)

(10) मानचित्र स्टैण्ड (Map-Stand)

(11) पत्रक देखना स्टैण्ड (Card Index Stand)

(12) ट्रेसिंग मेज (Tracing Table)

(13) डिस्प्ले केबीनेट (Display- Cabinet).

(14) पानी का गड्ढा (Water-Tank)

(15) शो केस (Show- Cases)

(16) निरीक्षण मेज (Observation-Table)
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