उत्तर भारत एवं दक्कन के प्रान्तीय राजवंश – Free Notes Pdf

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उत्तर भारत एवं दक्कन के प्रान्तीय राजवंश – इस पोस्ट में आपको उतर भारत एवं दक्कन के प्रांतीय राजवंश के मुख्य नोट्स मिलेंगे और साथ साथ अगर आपकोउत्तर भारत एवं दक्कन के प्रान्तीय राजवंश के syllabus पर आधारित पेपर practice करनी है तो आज ही ज्वाइन करे हमारे telegram चैनल को इसका link नीचे description बॉक्स में है

उत्तर भारत एवं दक्कन के प्रान्तीय राजवंश

• जौनपुर-फिरोजशाह तुगलक ने 300 नवीन नगरों की स्थापना की उसमें एक जौनपुर भी था। जौनपुर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने अपने चेचेरे भाई जूना खाँ (मुहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में की थी।

• सुल्तान मुहम्मद शाह द्वितीय के काल में (1394 ई.) जौनपुर एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की मलिक सरवर मुहम्मद शाह द्वितीय का दास था। सुल्तान ने उसे ‘मलिक-उस शर्क’ (पूर्व का स्वामी) तथा ‘ख्वाजा-ए-जहाँ’ की उपाधि प्रदान की थी। शर्की शासकों ने लगभग 85 वर्षों तक जौनपुर की स्वतन्त्रता को स्थापित रखा, किन्तु 1479 ई. में बहलोल लोदी ने इसके अन्तिम शासक हुसैन शाह शर्की को पराजित कर जौनपुर को पुनः दिल्ली सल्तनत का अंग बना लिया। इब्राहिम शाह शर्की जौनपुर के शर्की वंश का सबसे महान शासक था।

• वह बिधा और कला का प्रेमी था। उसके शासन काल में एक नवीन प्रकार की शैली जिसे शर्की शैली कहते हैं का उदय हुआ इस शैली में साधारण प्रकार की मीनारे हटा दी गयी और उनमें हिन्दी प्रभाव के चिन्ह झलकने लगे। उसने स्वयं ‘सिराज-ए-हिन्द’ की उपाधि धारण की। उसके समय में जौनपुर की सांस्कृतिक ख्याति चारों तरफ फैल गयी और जौनपुर ‘भारत का शिराज’ नाम से विख्यात हो गया मैथिली के विख्यात कवि विद्यापति ठाकुर तथा दिल्ली के काजी शहाबुद्दीन, इब्राहिम शाह के दरबार से सम्बन्ध थे 1139 काजी शहाबुद्दीन पर विशेष कृपा थी विद्यापति ने ‘कीर्तिलता काव्य’ में जौनपुर और इब्राहिम शाह का सुन्दर वर्णन किया है। जौनपुर उत्तरी भारत का महान सांस्कृतिक केन्द्र बन गया।

• उसके दरबार में अनेक विद्वान आश्रय पाये थे और उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की। प्रसिद्ध अटाला मस्जिद जो अब जौनपुर की शिल्प विद्या के दैदीप्यमान नमूने के रूप में खड़ी है इब्राहिम शाह शर्की के काल में पूरी हुई। उसने जौनपुर को एक सुन्दर नगर बनाया तथा उसके समय में स्थापत्य कला में एक नवीन शैली जौनपुर अथवा शर्की शैली का जन्म हुआ।

• बंगाल- बंगाल और बिहार को दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित करने का श्रेय इब्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी को था। परन्तु बंगाल दिल्ली से कितनी दूर था कि वहाँ के शासक प्रायः स्वतन्त्र रहे। बाद में इल्तुतमिश तथा बलबन को बंगाल को दिल्ली सल्तनत में मिलाना पड़ा। बलबन के पुत्र बुगरा खाँ ने बंगाल को स्वतन्त्र करा लिया। मुहम्मद बिन तुगलक के अन्तिम दिनों में फखरुद्दीन के विद्रोह के कारण बंगाल फिर स्वतन्त्र हो गया। 1345 ई. में हाजी इलियास बंगाल के विभाजन को समाप्त कर शम्शददीन इलियास के नाम पर बंगाल का शासक बना। 1375 ई. में शम्शुद्दीन इलियास की मृत्यु के बाद सिकन्दर शासक बना सिकन्दर ने पांडुआ में ‘अदीना मस्जिद’ का निर्माण करवाया। 1389 ई. में गयासुद्दीन आजमशाह अगला शासक बना वह अपनी न्यायप्रियता के लिए जाना जाता है।

• बंगाल के अमीरों ने 1493 ई. में योग्य सुल्तान अलाउद्दीन हसैनशाह को बंगाल की गद्दी पर बैठाया। उसने अपनी राजधानी पाण्डओं से गौह स्थानान्तरित कर दिया वह एक सेनाओं की ओर से भाग लिया। 1618-19 ई. में इस राज्य को बीजापर में मिला लिया गया।

• कश्मीर-हिन्दू राजवंश- 1286 ई. में सिम्हादेव ने एक पुराने हिन्दू राजवंश के अन्तिम शासक को मारकर नए हिन्दू राजवंश की स्थापना की। सिम्हादेव के उत्तराधिकारी सुहदेव के समय दलूचा के नेतृत्व में (1320 ई.) मंगोलों को आक्रमण हुआ। इस स्थिति का फायदा उठाकर लद्दाखी नायक के पुत्र रिंचन ने सिंहासन पर कब्जा कर लिया। सुहदेव के चचेरे भाई उदयन देव ने 1323 ई. में रिंचन को पराजित कर 1339 ई. तक कश्मीर पर शासन कर लिया।

• शाहमीर राजवंश- शाहमीर, सुल्तान शम्शुद्दीन के नाम से सिंहासनारूढ़ हुआ। इस राजवंश ने दिल्ली के स्वामित्व को कभी भी स्वीकार नहीं किया। इस राजवंश में 16 अन्य शासक हुए जिसमें ‘सिकन्दर’ व ‘जैन-उल-आबिदीन’ का विशिष्ट स्थान है। सिकन्दर को कश्मीर के औरंगजेब के नाम से जाना जाता है। वह धार्मिक रूप से असहिष्णु था उसने ‘जजिया’ को आरोपित किया तथा मूर्तियों को तोड़ा। इतिहासकार जोनराज ने लिखा है कि “सुल्तान अपने कर्तव्यों को भूल गया और दिन रात उसे मूर्तियों को नष्ट करने (वुतशिकन) में आनन्द आने लगा। ऐसा कोई शहर गाँव या जंगल न रहा जहाँ तुरुष्क सूहा (सिकन्दर) ईश्वर के मन्दिर न तोड़े हो।

• सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् आलीशाह सिंहासनरूढ़ हुआ। उसके वजीर शाहूभट्ट ने सिकन्दर की धार्मिक कट्टरता को आगे बढ़ाया। आलीशाह के भाई शाही खाँ जैन-उल-आबिदीन ने ततपश्चात् गद्दी संभाली। उसे कश्मीर के अकबर के नाम से जाना जाता है उसे ‘बदशाह’ या महान सल्तान कहा जाता है उसन रामायण तथा महाभारत का फारसी में अनुवाद करवाया था।

• आबिदीन ने वूलर झील में जैना लंका नामक एक कृत्रिम द्वाप का निर्माण करवाया उसने समरकन्द में कागज बनाने का कार्य आरम्भ करवाया। इसके बाद हाजी खाँ ‘हैदर शाह’ की उपाधि के साथ सिंहासन पर बैठा उसके शासन काल में इस वंश का अन्त हो गया।

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